शरद कोकास की कवितायें
शरद कोकास से मेरा पहला परिचय उनकी लम्बी कविता 'पुरातत्ववेत्ता' से हुआ…फिर मिले वह नेट पर…और शरद भाई बन गये…एक ऐसे कवि जिनसे मैने बहुत कुछ सीखा…कविता के भीतर भी और बाहर भी…इतने सहज कि लगा ही नहीं कि वह मुझसे एक पीढ़ी आगे के कवि हैं…इतने स्पष्ट की फोन पर बात करते हुए उनके चेहरे की रेखाओं को पढ़ा जा सके…और इतने स्नेहिल की उनसे बिना मिले कोई भी दुख शेयर किया जा सके…नेट जगत के अगर वह लगभग इकलौते ऐसे कवि हैं जिनके ब्लाग पर कविताओं की क्वालिटी और टिप्पणियों की क्वांटिटी दोनों लगातार बेहतर होते गयी है तो उसके मूल में उनका यही स्वभाव है…इस बार असुविधा में उनकी कुछ नयी-पुरानी कवितायें
डायन
वे उसे डायन कहते थे
गाँव मे आन पडी़ तमाम विपदाओं के लिये
मानो वही ज़िम्मेदार थी
उनका आरोप था
उसकी निगाहें बुरी हैं
उसके देखने से बच्चे बीमार हो जाते हैं
स्त्रियों व पशुओं के गर्भ गिर जाते हैं
बाढ के अन्देशे हैं उसकी नज़रों में
उसके सोचने से अकाल आते हैं
उसकी कहानी थी
एक रात तीसरे पहर
वह नदी का जल लेने गई थी
ऐसी खबर थी कि उस वक़्त
उसके तन पर एक भी कपडा़ न था
सर सर फैली यह खबर
कानाफूसियों में बढती गई
एक दिन
डायरिया से हुई किसी बच्चे की मौत पर
वह डायन घोषित कर दी गई
किसी ने कोशिश नही की जानने की
उस रात नदी पर क्यों गई थी वह
दरअसल अपने नपुंसक पति पर
नदी का जल छिडककर
खुद पर लगा बांझ का कलंक
मिटाने के लिये
यह तरीका उसने अपनाया था
रास्ता किसी चालाक मांत्रिक ने सुझाया था
एक पुरुष के पुरुषत्व के लिए
दूसरे पुरुष द्वारा बताया गया यह रास्ता था
जो एक स्त्री की देह से होकर गुजरता था
उस पर काले जादू का आरोप लगाया गया
उसे निर्वस्त्र कर दिन-दहाडे़
गलियों बाज़ारों में घुमाया गया
बच्चों ने जुलूस का समाँ बान्धा
पुरुषों ने वर्जित दृश्य का मज़ा लिया
औरतों ने शर्म से सर झुका लिये
एक टिटहरी ने पंख फैलाये
चीखती हुई आकाश में उड गई
न धरती फटी
न आकाश से वस्त्रों की बारिश हुई |
फिसलपट्टी
फिसलपटटी से फिसलते हैं बच्चे
सीढ़ीयाँ चढ़कर ऊपर तक पहुँचते हैं
ऊँचाई उन्हे आकर्षित करती है
फिसलना उन्हे रोमांच से भर देता है
वे बस पहली बार फिसलने से डरते हैं
एक दिन यह सीढ़ियाँ
ईमानदारी की सीढ़ियाँ बन जाती हैं
सीढ़ियों पर रखा एक एक कदम
नैतिकता की बुलन्दी पर ले जाता है
बेईमानी की फिसलपट्टी उन्हे बुलाती है
सुख-सुविधाओं के मायाजाल में फँसाती है
उन्हे याद आता है
बचपन की फिसलपट्टी का रोमांच
जहाँ उन्हें सम्भालने के लिये
कुछ हाथ होते थे
नर्म रेत होती थी
चोटों से बचाने के लिये
बड़ेपन की इस फिसलपट्टी में
थामने वाला कोई नहीं होता
सिर्फ फिसलने का मज़ा होता है
बिना मेहनत के मिला झूठा सुख होता है
वे जानते हैं
फिर भी फिसलते हैं
फिसलकर औन्धे मुँह गिरते हैं
फिसलपट्टी एक खेल है
जो केवल बच्चों के लिये होता है
वे फिसलने से बच जाते हैं
जो बड़े होकर यह बात समझ जाते हैं ।
हमलावर
हमलावरों की कोई जात नहीं होती थी
बस धर्म होता था
ईमान नहीं होता था
चूल्हे की आग से लेकर
लड़कियाँ तक उठा ले जाने की
बदतमीज़ियाँ उन्होने कीं
उनके घोड़ों की टापों से
कुचली गई रुलाइयाँ
विध्वंस के स्वर्ग की कल्पना
उनके दिमाग़ों की उपज थी
उनके अट्टहास चट्टानों से टकराकर लौट आते थे
उनके नेजों पर लगा लहू
सूख भी नहीं पाता था और वे
बस्तियाँ रौन्दने निकल जाते थे
हर रात रोटियों के साथ
हत्या का पाप
वे नमक मिर्च की तरह लगाकर
हज़म कर जाते थे
मज़े की बात यह कि वे
इंसानों का शिकार करते थे
लेकिन उनका गोश्त नहीं खाते थे
पीढ़ियों तक चलते रहे
हमलावरों के किस्से
और लुप्त हो गये
अब हमलावर उस तरह नहीं आते ।
खुशी के बारे में
खुशी के बारे में सोचो
कि खुशी क्या है
सुख-सुविधाओं में जीना
ज़िम्मेदारियों से मुक्त होना
जीवन में दुख व संघर्ष का न होना
तालियाँ बजा बजा कर भजन गाना
आँखें मून्दकर प्रसाद खाना
बच्चों से रटा हुआ पहाड़ा सुनना
हर इतवार सिनेमा देखना
अपनी हैसियत पर इतराना
या फिर
खुशी के बारे मे न सोचते हुए
किसी में जीने की ताकत भर देना
किसी बुज़ुर्ग से दो बातें कर लेना
रोते हुए बच्चे को चुप कराना
बेसहारा का सहारा बन जाना
गोया कि इस तरह मिलीं खुशियाँ
दूसरों में बाँट देना
वह भी सोचो यह भी सोचो
खुशी के बारे में
एक बार फिर सोचो ।
कैप्टन कुक की कथा
वह पानी पर चलता था
और सपनों में पांव रखने के लिए ज़मीन तलाशता था
बुलन्दी के आसमान में जहाँ
पहले ही कई मशहूर सितारों के नाम टंगे थे
अपने नाम का एक सितारा जड़ना चाहता था वह
परम्परा से उसने हौसला लिया
जाति से लिया स्वाभिमान
और समन्दर के हवाले कर दी अपनी नाव
किस्मत और लहरें और हवाएँ
उसे कहाँ ले जाएंगी वह खुद नहीं जानता था
पानी पर कोई तयशुदा रास्ता नहीं था
और सितारे अस्त हो जाते थे दिन निकलते ही
कुतुबनामे की सुई थी उसकी विश्वसनीय साथी
दूरबीन से भी आगे देखती थी उसकी आंखें
दसों दिशाओ की टोह लेती थीं
उसकी थकान में सर उठाते थे तूफान
वहीं पंछियो को देख चहक उठता वह
बच्चों सा खेलता कुदरत की भूलभुलैया में
वह जानता था उसकी नाव का लंगर
तय करेगा दुनिया का नया मानचित्र
शंख सीपियों के बीच मनुष्य मिले उसे रेत में
जो पेडों के इर्द-गिर्द रहते थे
और मनुष्यों की तरह ही थे शक्लो-सूरत में
उनकी भूख में शामिल की उसने अपनी भूख
उनके चेहरे पर चिपका अजनबीपन
डिब्बाबन्द भोजन और सिगरेटों के बदले खरीद लिया
फिर उनके ज़मीर पर अपने देश का झंडा गाड़कर
चल पडा वह एक नई ज़मीन रौन्दने
अगले पडाव पर जिस कबीले में वह पहुँचा
कबीले की तरह ही था वह कबीला
जिसकी आंखों में स्वर्ग से आनेवाले किसी देवता की प्रतीक्षा थी
जो अपने खुरदुरेपन में जीते लोगों के लिए
उपहार में मखमली ख्वाब लेकर आनेवाला था
ठीक देवता की तरह था उसका प्रवेश
और वह अपने प्राकट्य में मनुष्य था
मोह लोभ लालसा से घिरा हुआ
सामर्थ्य की सीमाओं से बन्धा हुआ
वरदान की शक्ति से सर्वथा वंचित
स्वयं चमत्कारों के फेर में पड़ा हुआ
देवता की तरह गोचर होने के बावज़ूद
वह उनकी कल्पना का देवता नहीं था
नक्शे में उनका नाम दर्ज़ करने की कीमत भी इस बार
चन्द सिगरेट और मोती के हार नहीं उसकी जान थी
मनुष्य के द्वारा मनुष्य की हत्या की तरह
अनभिज्ञता के हाथों सभ्यता का मारा जाना
अस्वाभाविक नहीं था उस आदिम संस्कृति में
यह क्षमता और अपेक्षा के द्वन्द की शुरुआत थी
बस इतनी सी कथा है कैप्टन कुक की
कि चालीस बरस लहरों पर डोलता रहा उसका अदम्य साहस
ओबामा बुश ब्लेयर क्लाईव का वह परदादा था
अविकसित सभ्यताओं पर जीत के लिए
मुकर॔र ईनाम था
राष्ट्रीय नायकों की सूची में उसका नाम
नमकहलाली का पर्यायवाची वह नाम
अब आटे और नमक के पैकेटों पर सवार होकर
निकला है विकासशील सभ्यताओं को जीतने ।
टिप्पणियाँ
डायन और फिसलपट्टी का जवाब नहीं...