नये साल पर मनोज छाबरा की दो कवितायें





( हिसार में रहने वाले मनोज छाबरा कवितायें लिखते हैं, कार्टून बनाते हैं और रंगमंच पर भी सक्रिय हैं। उनका एक संकलन 'अभी शेष है इन्द्रधनुष' वाणी प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है। आप उनसे यहाँ मिल सकते हैं।)



हिसार

हिसार!

बिना दरवाजों का एक शहर
एकदम खुला
सुबह
मुर्गे की आवाज़ से नहीं
किसी-किसी घर में
चिड़ियों की आवाज़ से होती है

सबसे पहले इस शहर में
बिहार जागता है
सच है
सारे मुल्क में सबसे पहले बिहार जागता है
सबसे पहले
बर्तनों में चावल उबलता है
शहर जगता है जब लेबर चौक में
बिहार दृढ़ता से डटा होता है
सैकड़ों कोस दूर
मुंबई तक ये समाचार पहुँचता होगा ज़रूर
जहाँ
मैथिली-भोजपुरी ज़ुबान पर
बैठाया जा चुका है कर्फ्यू

बिहार का हिसार से
रिश्ता है कुछ वैसा ही
जैसा
मेहनत का प्रगति से
यदा-कदा
कुछ चिडचिडे लोग
मुंबई बना देना चाहते हैं हिसार को
परन्तु
अगली सुबह
वही लोग
ढूंढते हैं लेबर चोक में
ट्रांजिस्टर साईकिल से बांधे
घूमते-फिरते बिहार को

हर शाम
जब गूज़री-महल के खंडहरों से उड़कर
उत्तर की ओर जाते हैं
चमगादड़
बिहार सारा
मनीआर्डर की पांत में खड़ा होता है
हिसार की खुशहाली
पूरे राष्ट्र की खुशहाली के जैसे
पहुँचती है दूर बिहार में
और
रात देर तक
ताड़ी को याद कर
नाचता है बिहार
हिसार की अधबनी इमारतों में


झूठ के शो-रूम के सामने

झूठ के शो-रूम के सामने
सच की भी एक छोटी-सी रेहड़ी लगती है
सच पर हमेशा
बैठा दिया जाता है पहरा
और
झूठ के पास चतुर सेल्समैन
जो हर ग्राहक को
ज़रूरतानुसार बेचता है झूठ
लाखों सेल्समेन से लदे टेलिविज़न से
जब हम सुनते हैं
प्रायोजित ख़बरें
और देखते हैं कामातुर सासों को
ढेरों प्रेमियों से घिरी प्रेमिका को
तब
सच की टूटी रेहड़ी के पहिये पर
झूठ का अल्सेशियन कुत्ता
पेशाब कर जाता है

टिप्पणियाँ

Arun sathi ने कहा…
हिला दिया जी

इसे कह्ते संवेदना
सबसे पहले इस शहर में
बिहार जागता है
सच हैसारे मुल्क में
सबसे पहले बिहार जागता है
क्या बात है!!! बहुत खूब.
नये वर्ष की असीम-अनन्त शुभकामनाएं.
Farid Khan ने कहा…
बहुत ख़ूब 'हिसार'। बिहारी मज़दूर और हिसार की प्रगति, और मुम्बई के हंगामे। एक व्यापक अर्थ के साथ प्रस्तुत हुई है यह कविता। मनोज को बधाई और अशोक जी का आभार इसे यहाँ पोस्ट करने के लिए।
अजेय ने कहा…
जहाँ ज़बानों पर कर्फ्यू बैठाया जा चुका है .....
jeevn-sangharsh aur sangharsh ki sthitiyon ki pdtal krte man se upji shabd-sampda,kvitai roop mein, jo hain amol bde.
jeevn-sangharsh aur sangharsh ki sthitiyon ki pdtal krte man se upji shabd-sampda,kvitai roop mein, jo hain amol bde.
jeevn-sangharsh aur sangharsh ki sthitiyon ki pdtal krte man se upji shabd-sampda,kvitai roop mein, jo hain amol bde.
हिसार कविता में प्रवासी मजदूरों की महत्‍ता बहुत संवेदना के साथ उभरती है। बिहार जैसे एक सशक्‍त प्रतीक ही बन गया है मेहनत का। बधाई।
रवि कुमार ने कहा…
हिसार...
क्या बेहतर कविता...

और दूसरी...कितना ज़िंदा बयान...
निरंजन श्रोत्रिय ने कहा…
मनोज छाबड़ा की 'हिसार" एक महत्वपूर्ण कविता है! अपनी ज़मीन से स्वप्नो के पीछे भागने की विवशता...ऐसे कई हिसार हैं हमारे देश में!
arun dev ने कहा…
manoj achha likkh rahe hain....
badhai..
Ashwani ने कहा…
बहुत अच्छे मनोज...ज़िन्दगी से कविता ढूँढ़ते रहो यूँही..ज़िन्दगी देखना अच्छा लगता है..किसी की..किसी अपने की नज़र से..
कविताएं अच्छी है....
कविताएं अच्छी हैं
मनोज पटेल ने कहा…
बहुत अच्छी कवितायेँ....
mayamrig ने कहा…
हां, मैं अच्‍छे को अच्‍छा कहना चाहता हूं...। यह अच्‍छा है कि हम अपने इर्द-गिर्द की दुनिया को पूरी संवेदना से देखें...यह जरूरी है कि हम भ्रम और वास्‍तविकता में से वास्‍तविकता का चुनें..यह होना ही है कि जो संवेदनशील है, जो वास्‍तविक है...वह बेहतर है....
neera ने कहा…
आइना हैं हिसार और सच-झूठ का...
नमस्कार !
अशोक जी
मनोज जी !
हिसार का नाम देख बड़ा अच्चा लगा , कुणी के मेरा बचपन पूरा वही बीता है , मॉडल टाउन में . कविता तो अच्छी है ही , साधुवाद
अरुण अवध ने कहा…
ये कवितायेँ इस बात की गवाह हैं की रचनाकार एक सहज कवि ही नहीं सहज व्यक्ति भी है !
यह सहजता अपने परिवेश से सहजता से जुड़ने का फल है -- बिना किसी दबाव,आग्रह और आकर्षण के !
कवितायेँ बेहद सुन्दर हैं ,विषय सामाजिक उत्तरदायित्व और उसे निभाने की प्रतिबद्धता का चुनाव है !
खुली आँख से परिदृश्य को ताड़ती और उसके भीतर छिपे यथार्थ को खींच लाने की दक्षता रचना में दीखती है !
मनोज जी को बधाई और अशोक जी को धन्यवाद !
Unknown ने कहा…
हिसार- ए- फिरोजा, बिहार का चित्रण: अतुलनीय ।।।
कविता मे भावानूभूति वास्तविक ।जैसे गुजरान पडाव मे साक्षात खडे हों ।।
Unknown ने कहा…
हिसार- ए- फिरोजा, बिहार का चित्रण: अतुलनीय ।।।
कविता मे भावानूभूति वास्तविक ।जैसे गुजरान पडाव मे साक्षात खडे हों ।।

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

अलविदा मेराज फैज़ाबादी! - कुलदीप अंजुम

पाब्लो नेरुदा की छह कविताएं (अनुवाद- संदीप कुमार )

रुखसत हुआ तो आँख मिलाकर नहीं गया- शहजाद अहमद को एक श्रद्धांजलि