मैं धरती को एक नाम देना चाहता हूँ
मां दुखी है
कि मुझ पर रुक जायेगा ख़ानदानी शज़रा
वशिष्ठ से शुरु हुआ
तमाम पूर्वजों से चलकर
पिता से होता हुआ
मेरे कंधो तक पहुंचा वह वंश-वृक्ष
सूख जायेगा मेरे ही नाम पर
जबकि फलती-फूलती रहेंगी दूसरी शाखायें-प्रशाखायें
मां उदास है कि उदास होंगे पूर्वज
मां उदास है कि उदास हैं पिता
मां उदास है कि मैं उदास नहीं इसे लेकर
उदासी मां का सबसे पुराना जेवर है
वह उदास है कि कोई नहीं जिसके सुपुर्द कर सके वह इसे
उदास हैं दादी, चाची, बुआ, मौसी…
कहीं नहीं जिनका नाम उस शज़रे में
जैसे फ़स्लों का होता है नाम
पेड़ों का, मक़ानों का…
और धरती का कोई नाम नहीं होता…
शज़रे में न होना कभी नहीं रहा उनकी उदासी का सबब
उन नामों में ही तलाश लेती हैं वे अपने नाम
वे नाम गवाहियाँ हैं उनकी उर्वरा के
वे उदास हैं कि मिट जायेंगी उनकी गवाहियाँ एक दिन
बहुत मुश्किल है उनसे कुछ कह पाना मेरी बेटी
प्यार और श्रद्धा की ऐसी कठिन दीवार
कि उन कानों तक पहुंचते-पहुंचते
शब्द खो देते हैं मायने
बस तुमसे कहता हूं यह बात
कि विश्वास करो मुझ पर ख़त्म नहीं होगा वह शज़रा
वह तो शुरु होगा मेरे बाद
तुमसे !
टिप्पणियाँ
विश्वास करो मुझ पर खत्म नही होगा यह शजरा ...मार्मिक ...उदासी की कविता ..आखिर में आश्वस्त करती है ...बहुत खूब भाई ..
पेड़ों का, मक़ानों का…
और धरती का कोई नाम नहीं होता…"
बिल्कुल नई दृष्टि। बहुत ख़ूब। बहुत उम्दा। बधाई।
**अंशुमाली रस्तोगी मेल पर
घुघूती बासूती
aape naye kavita sanghrh ke prti lalasa is kavita ne badha di hai.
nav varsh ki aap sabhi ko bahut badhai ,
saadagi . maasoom , aur gahree bhaav waali kavita . sunder abhivyakti
saadar
अशोक जी !
नव वर्ष कि आप सभी को हार्दिक बधाई
खूबसूरत और बेहद मासूम कविता है,अच्छी कविता साधुवाद
आभार !
वह तो शुरु होगा मेरे बाद
तुमसे !
काश! यही विश्वास सबमे हो...
बेहतरीन कविता
ek nimantran: mere blog pe aane ka:)
बेहतर कविता
मानस को तर कर देती है
umda rachna
kabhi yha bhi aaye
www.deepti09sharma.blogspot.com
अच्छी कविता सर।
अच्छा सन्देश देती है आपकी रचना ! बहुत बधाई !
यह विश्वास नियति तय करे
आभार
बहुत बढ़िया कविता/बढ़िया बात