चार्ल्स ब्युकोवस्की की एक कविता


चार्ल्स ब्युकोवस्की
भीड़ की महारत

छल, हिंसा और व्यर्थता से इतना भरा होता है एक औसत आदमी
कि पर्याप्त वह किसी सेना के एक दिन के लिये

और सबसे काबिल हत्यारे हैं वे जो हत्या के ख़िलाफ़ प्रवचन देते हैं
और सबसे अधिक घृणा करते हैं वे जो प्रेम की शिक्षायें देते है
और अंततः सबसे अधिक जंगख़ोर हैं वे जो शांति के उपदेश देते हैं

जो हरिकथा सुनाते हैं उन्हें ज़रूरत है भगवान की
जो शांति के उपदेश देते हैं नहीं है उनके पास शांति
जो प्रेम की शिक्षा देते हैं नहीं है उनके पास प्रेम

उपदेशकों से सावधान रहो
सावधान रहो विद्वानों से
उनसे सावधान रहो जो हमेशा ही पढ़ते रहते हैं किताबें
उनसे सावधान रहो जो ग़रीबी से घृणा करते हैं
या कि जिन्हें गर्व है इस पर
उनसे सावधान रहो जो प्रशंसा करने में नहीं लगाते देर
कि बदले में चाहिये होती है उन्हें प्रशंसा
सावधान रहो उनसे जो तुरत लगाते हैं सेंसर
कि वे डरते हैं उससे जो वे नहीं जानते
सावधान रहो उनसे जो हर वक़्त ढ़ूंढ़ते हैं भीड़
कि अकेले कुछ भी नहीं वे
औसत आदमी से सावधान रहो, औसत औरत से और
सावधान रहो उनके प्यार से
औसत है उनका प्यार और औसत को ही ढ़ूंढ़ता है


लेकिन उनकी महारत नफ़रत में है
इतनी महारत है उनकी नफ़रत में
कि कर सकती है तुम्हारी
या किसी की भी हत्या

जो नहीं चाहते एकांत
जो नहीं समझते एकांत को
वे हर उस चीज़ को नष्ट करने के लिये तैयार होंगे
जो अलग है उनकी चीज़ों से
चूंकि ख़ुद नहीं कर सकते सृजन किसी कला का
वे नहीं समझेंगे कला को
सर्जक के रूप में अपनी असफलता को
वे केवल दुनिया की असफलता की तरह समझेंगे
पूरी तरह से प्यार करने में अक्षम
वे समझेंगे कि अधूरा है तुम्हारा प्यार
और फिर वे तुमसे नफ़रत करेंगे
और उनकी नफ़रत बिल्कुल निष्कलंक होगी

चमकते हीरे की तरह
चाकू की तरह
पर्वतशिखर की तरह
चीते की तरह
धतूरे की तर

अनुवाद मेरा

टिप्पणियाँ

sandhya navodita ने कहा…
कवि का संक्षिप्त परिचय भी देते तो बेहतर होता.रचना के साथ रचना काल,परिस्थिति भी महत्वपूर्ण है.अनुवाद रवानगी भरा है .अनुवाद में कहने की ज़रूरत नही , आप एक्सपर्ट हो गए हैं. बढ़िया चयन.
neera ने कहा…
समय और समाज का आइना दिखाई देता है कविता में .. इसके प्रवाह से लगता नहीं की अनुवाद की गई है..
mukti ने कहा…
कविता बहुत ही अच्छी है. आमतौर पर गहरी बात कहने वाली कविताएँ थोड़ी कठिन लगती हैं. पर इस कविता की सहजता मुझे बहुत अच्छी लगी. और एक बार फिर मैं यही कहूँगी कि इसका श्रेय आपके अनुवाद को जाता है.
Rahul Singh ने कहा…
फूंक-फूंक कर कदम रखते हुए...
कहा यह भी जाता है कि दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है और आश्‍वस्‍त होकर फिर गरम दूध से जलता है.
prabhat ranjan ने कहा…
उनकी महारत नफरत में है... बहुत-बहुत अच्छी कविता उतना ही प्रवाहपूर्ण अनुवाद. आपका आभार पढवाने के लिए.
Pratibha Katiyar ने कहा…
अशोक जी बहुत ही अच्छी और सच्ची कविता पढवाने का शुक्रिया! मुझे ऐसी कवितायेँ ही पसंद हैं. अनुवाद कविता के प्रवाह को आगे बढ़ा रहा है.
जो हरिकथा सुनाते हैं उन्हें जरुरत है भगवान की
जो शांति का उपदेश देते हैं उनके पास नहीं है शांति
जो प्रेम की शिक्षा देते हैं नहीं है उनके पास प्रेम

उपदेशकों से सावधान रहो
सावधान रहो विद्वानों से
उनसे सावधान रहो जो पढते ही रहते हैं हमेशा किताबें

बहुत ही अद्बुत पंक्तियां है अशोक जी! आभार साझा करने के लिए
siddheshwar singh ने कहा…
अशोक भाई,

इस कविता / अनुवाद को कई बार पढ़ चुका हूँ। पहली बार पढ़कर यूँ ही बाहर सड़क पर डोलता रहा और अपने आगे शबो-रोज होने वाले तमाशे के मुजाहिरे का दर्शक (भर) बनने पर खीझता रहा। ऐसी कवितायें भारतीय एवं पाश्चात्य काव्यशास्त्र की पोथियों में बताया जाने वाला आस्वाद व काव्यानंद नहीं देतीं। वह क्या देती हैं , संभवत: हम अपने से भी कहने से बचते हैं।

अपना यह चार्ल्स मुझे मुझे खरी बात कहने वाला इंसान लगता है ;कवि अच्छा तो वह है ही। इसकी कवितायें पसंद हैं मुझे। एकाध मेरा अनुवाद 'कबाड़ख़ाना' पर है भी। आपका यह अनुवाद बहुत उम्दा है। इससे 'कविता' प्रकट भी होती है और अग्रेषित भी।

इस कविता में कवि ने ऐसा क्या क्या विलक्षण कह दिया है? मेरी समझ से तो वही कह रहा है जो सबके बीच और सबके साथ देख रहा है लेकिन ढेर सारी चुप्पियों के बीच उसका 'कुछ' कह देना सिर्फ़ बोलना नहीं है। और क्या कहूँ..!

आप इस बीच अनुवाद पर खूब मेहनत कर रहे हैं। आपका चयन बताताता है कि कविता को आप कैसे बरतते हैं मेरी समझ से जो किसी चीज को बरतने में सचेत है वह उन्हें संप्रेषित करने में सजग तो होगा ही। बधाई एक अच्छी कविता से रू-ब- रू करवाने के लिए।
Ashok Kumar pandey ने कहा…
सिद्धेश्वर भाई…ये अपना चार्ल्स वाकई बहुत खरा है और हमारी भूलती जा रही गोरखपुरी में कहें तो 'बेअंदाज़'…कल फेसबुक पर राशिद भाई ने पढ़वाया तो एक घंटे भी इंतज़ार नहीं हुआ और इसे अपनी जबान में कह डाला…शायद ख़ुद न कह पाने का गिल्ट थोड़ा कम हो गया। और यह अनुवाद का चस्का आप और मेरे हमनाम ने ही लगाया है…
रवि कुमार ने कहा…
ओह...
कितना समयानुकूल अनुवाद...

कविता अभी को समझने की कई कुंजियां प्रदान करती है...अभिभूत
Amrendra Nath Tripathi ने कहा…
कविता इतनी सुन्दर है कि कवि के जीवन के बारे में जानने की जिज्ञासा पैदा हो गयी , ऊपर किन्हीं नवोदिता जी ने थोड़े परिचय की बात की है , मैं विस्तार चाहता हूँ !
समय संकटपूर्ण है - इसे कहने वाले कम नहीं , कविता ऐसे मीमांसकों की मीमांसा के बृहद स्वर को रख रही है - तर्क/संवेदन-पूर्ण ढंग से , यह पक्ष मुझे सर्वाधिक प्रभावी लगा !
अनुवाद में आपका कौशल सराहनीय है , अनुवाद की अखरन नहीं है , सहज है , कहने के अंदाज में , यही बेहतर भी होता है ! आभार !
@ असक्षम
--- अक्षम कैसा होगा , देव ?
Ashok Kumar pandey ने कहा…
शुक्रिया अमरेन्द्र…सुधार कर दिया है। परिचय न देने की दो वज़हें हैं - पहला यह कि जब पोस्ट किया था तो लगभग एक घण्टे पहले ही भाई राशिद अली से मिली इस कविता से मेरी इन महोदय से पहली मुलाक़ात हुई थी और तुरत-फुरत में विकिपीडिया से बस कामचलाऊ जानकारी मिली थी। दूसरा- उस समय इस कविता को पोस्ट करके आप सब को पढ़ाने की ऐसी ग़ज़ब बैचेनी थी कि रात भर रुक कर इनके बारे में जांच-पड़ताल करने का धैर्य ही नहीं था।

जीवन तो जो था वो था…इनकी कवितायें फोटू के नीचे लिखे नाम से लिंक कर दी है। उसे क्लिक करके पढ़ी जा सकती हैं।
Vidrohee ने कहा…
जल्दी तारीफ़ नहीं करूंगा, अच्छा लगा।
ARVIND KUMAR KHEDE ने कहा…
मैं अपनी एक छोटी-सी कविता के साथ आपके द्वार पर दस्तक दे रहा हूँ....अपनी इस अयाचित उपस्थिति के लिए क्षमा याचना सहित.....सादर.....अरविन्द...
कविता-कुछ नहीं आयेगा हाथ हमारे.....
----------------------------------
जो भी सच है
भला या बुरा
खुदा करे
इसी अँधेरे में दफ़न हो जाये.
वर्ना टूटेगी हमारी धारणाएं.
और गुम हो जायेंगे हम इन अंधेरों में.
जी भी कहा-सुना गया है
अच्छा या बुरा
खुदा करे
विसर्जित हो जाये.
वर्ना जन्म देगा एक नए विमर्श को.
अपनी तमाम बौद्धिकता को धता बताते हुए
कूद पड़ेंगे हम अखाड़े में.
तुम अपना सच रख लो
मैं अपना झूठ रख लेता हूँ.
वर्ना इस नफे-नुकसान के दौर में
कुछ नहीं आयेगा हाथ हमारे.....
----अरविन्द कुमार खेड़े.
---------------------------------
अरविन्द कुमार खेड़े
जन्मतिथि- 27 अगस्त 1973
शिक्षा- एम.ए.
प्रकाशित कृतियाँ- पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित
सम्प्रति- प्रशासनिक अधिकारी लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग मध्य प्रदेश शासन
पता- 203 सरस्वती नगर धार मध्य प्रदेश
मोबाईल नंबर- 9926527654
ईमेल- arvind.khede@gmail.com
ARVIND KUMAR KHEDE ने कहा…
मैं अपनी एक छोटी-सी कविता के साथ आपके द्वार पर दस्तक दे रहा हूँ....अपनी इस अयाचित उपस्थिति के लिए क्षमा याचना सहित.....सादर.....अरविन्द...
कविता-कुछ नहीं आयेगा हाथ हमारे.....
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जो भी सच है
भला या बुरा
खुदा करे
इसी अँधेरे में दफ़न हो जाये.
वर्ना टूटेगी हमारी धारणाएं.
और गुम हो जायेंगे हम इन अंधेरों में.
जी भी कहा-सुना गया है
अच्छा या बुरा
खुदा करे
विसर्जित हो जाये.
वर्ना जन्म देगा एक नए विमर्श को.
अपनी तमाम बौद्धिकता को धता बताते हुए
कूद पड़ेंगे हम अखाड़े में.
तुम अपना सच रख लो
मैं अपना झूठ रख लेता हूँ.
वर्ना इस नफे-नुकसान के दौर में
कुछ नहीं आयेगा हाथ हमारे.....
----अरविन्द कुमार खेड़े.
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अरविन्द कुमार खेड़े
जन्मतिथि- 27 अगस्त 1973
शिक्षा- एम.ए.
प्रकाशित कृतियाँ- पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित
सम्प्रति- प्रशासनिक अधिकारी लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग मध्य प्रदेश शासन
पता- 203 सरस्वती नगर धार मध्य प्रदेश
मोबाईल नंबर- 9926527654
ईमेल- arvind.khede@gmail.com
सशक्त कविता,दमदार अनुवाद!!! बधाइयाँ
उस लिखावट को सलाम,जिसे पढ़कर लिखने वाले के व्ययैक्तिक जानकारी के प्रति उत्सुकता नहीं जागे बल्कि उसके लिखे हुए को और पढ़ने का मन करे,बेचैनी पैदा करे......चाहे वो जर्मनी का हो या अमेरिका का ....सशक्त कविता का दमदार अनुवाद!!! बधाइयाँ !!!

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