सिराज फैसल खान की ग़ज़लें
सिराज फैसल खान से मेरी मुलाक़ात फेसबुक पर हुई. महज बीस साल के फैसल की ग़ज़लें पढते हुए अक्सर लोगों को हैरत होती है. ये एक तरफ जहाँ उर्दू-हिन्दी की प्रगतिशील परम्परा से जुडती हैं तो दूसरी तरफ अपने समय के सवालों से सीधी रु ब रु हैं. आज असुविधा पर उनकी चार गजलें.
परिचय - 10 जुलाई 1991 को शहीदोँ के नगर शाहजहाँपुर(उप्र) के एक छोटे से गाँव महानंदपुर मेँ जन्म। प्रारम्भिक शिक्षा गाँव के प्राथमिक स्कूल मेँ और उसके बाद इन्टरमीडिएट तक शाहजहाँपुर के इस्लामियाँ इन्टर कॉलेज मेँ पढ़ाई की। वर्तमान मेँ गाँधी फैज़ ए आम डिग्री कॉलेज शाहजहाँपुर मेँ बी एस सी बायोलॉजी के छात्र। कुछ वेब पत्रिकाओं में ग़ज़लें प्रकाशित
(एक)
डूब गया मैँ यार किनारे पर वादोँ की कश्ती मेँ
और ज़माना कहता है कि डूबा हूँ मैँ मस्ती मेँ
जिस दिन उनका हाथ हमारे हाथोँ मेँ आ जाएगा
सच कहता हूँ आ जाएगी दुनियाँ मेरी मुठ्ठी मेँ
ठीक से पढ़ भी नहीँ सका और भीग गईँ पलकेँ मेरी
मीर को रखकर भेज दिया है ग़ालिब ने इक चिठ्ठी मेँ
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई आपस मेँ सब भाई हैँ
सरकारी ऐलान हुआ है आज हमारी बस्ती मेँ
रोज़ कमीशन लग के वेतन बढ़ जाता है अफसर का
और ग़रीबी पिसती जाती मँहगाई की चक्की मेँ
लातेँ घूँसे जूते चप्पल राजनीति मेँ चलते थे
संसद भी चलती है भइया अब तो धक्का मुक्की मेँ
लंदन पेरिस अमरीका जापान से मुझको क्या मतलब
दफ्न मुझे होना है अपने हिन्दुस्तान की मिट्टी मेँ
(२)
रोज़ नया एक ख़्वाब सजाना भूल गए
हम पलकोँ से बोझ उठाना भूल गए
साथ निभाने की कसमेँ खाने वाले
भूले तो सपनोँ मेँ आना भूल गए
जब से तुमने नज़र मिलाना छोड़ दिया
हम लोगोँ से हाथ मिलाना भूल गए
उनसे मिलने उनके घर तक जा पहुँचे
क्योँ आये हैँ यार बहाना भूल गए
झूठोँ ने सारी सच्ची बातेँ सुन लीँ
सूली पर मुझको लटकाना भूल गए
पीने वाले मस्जिद तक कैसे पहुँचे
हैरत है ग़ालिब मैख़ाना भूल गए
तुमने जब से छत पर आना शुरु किया
लोग उतरकर नीचे जाना भूल गए
चकाचौँध मेँ बिजली की ऐसे खोये
कब्रोँ पर हम दीये जलाना भूल गए
दर्द पे कुछ लिखने की मैँने क्या सोची
मीर भी अपना दर्द सुनाना भूल गए
अंग्रेजी का भूत चढ़ा ऐसा सिर पर
बच्चे हिन्दी मेँ तुतलाना भूल गए
(तीन)
किसने ख़्वाबोँ से गुज़रते हुए रुककर देखा
सिर्फ एक दर्द मिला, हमने जो जगकर देखा
ख़ुद को बदला भी तो बदला ना नज़रिया उनका
हमने बेकार ही अपने को बदलकर देखा
जाम मेँ ज़हर दिया हँस के पिलाया मुझको
और फिर नब्ज़ को हौले से पकड़कर देखा
ज़िन्दगी तुझसे गिला है तो मुझे बस इतना
मौत जब ले के चली क्योँ नहीँ मुड़कर देखा
ठीक हो जायेगा सब मुझसे ये कहने वाले
तुने भी क्या किसी अपने से बिछड़कर देखा
( चार)
घोटाले करने की शायद दिल्ली को बीमारी है
रपट लिखाने मत जाना तुम ये धन्धा सरकारी है
तुमको पत्थर मारेँगे सब, रुसवा तुम हो जाओगे
मुझसे मिलने मत आओ मुझपे फतवा जारी है
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई आपस मेँ सब भाई हैँ
इस चक्कर मेँ मत पड़िएगा ये दावा अख़बारी है
भारतवासी कुछ दिन से रुखी रोटी खाते हैँ
पानी पीकर जीते हैँ, महँगी सब तरकारी है
नया विधेयक लाओ अब के बूढ़े सब आराम करेँ
देश युवाओँ को दे दो अब नये ख़ून की बारी है
जीना है तो झूठ भी बोलो, घुमा फिराकर बात करो
केवल सच्ची बातेँ करना बहुत बड़ी बीमारी है
सारी दुनियाँ तेरी है, तू ही सबका रखवाला है
मुस्लिम का तू अल्लाह है और हिन्दू का गिरधारी है
टिप्पणियाँ
नीरज
सरकारी एलान हुआ है आज हमारी बस्ती में"।
बहुत ख़ूब सिराज। वक़्त और हालात पर ज़बर्दस्त तंज़ करती रचनाएँ। ढेरों शुभकामनाएँ।
ASHOK BHAI KA SHUKRAGUJAAR HUn KI IS SHAM-E-TEHJEEB SE RU-B-RU KARVA DIYA.AUR ALLAH IS JOSH KO AUR BEBAQI AUR BULANDI ATA KARE.AAMEEN.
meri duaen aur nek khwahishat ap ke sath hain
hamesha khush rahiye aur aisa hi likhte rahiye
achchhi ghazlen hain jo ap ke raushan mustaqbil ka suboot hain,, mashaAllah
is umra mein sooch ka ye vistar dekhne kam hi milta hai aaj kal.
badhai
apna ek sher yaad aa gaya yunhi......
aasmanoon se bada vistar hai,
choti aankhon me bada sansar hai.
badhai,
इतनी अच्छी ग़ज़लें पढ़कर मेरे रोंगटे खरे हो गए।
भगवान इन्हें खूब तरक्की दे!
मीर को रखकर भेज दिया है ग़ालिब ने इक चिठ्ठी मेँ
मुझे ये बेहद पसंद आया।
बहुत ही सुखद है पढ़ना नयी पीढ़ी को इन तेवरों के साथ..... ठीक ही कहते हो..बूढों के लिए नया विधेयक लाओ. अब नए खून कि बारी है...
अशोक जी नयी प्रतिभाओं को ढूंढ पर प्रस्तुत करने के लिए शुक्रिया...
gam-e-bag se ek bar jara nikal dekho galib
duniya utni badtar buri bhi to nahi hai...
gam-e-bag se ekbar nikal dekho galib
duniya utni bhi buri to nahi hai...
" मुझमें है वो ताकत इस नाज़ुक सी उम्र में, लग जाती है जिंदगी कमाने में" .......बधाई क़ुबूल करें
because i am also try to be write
poem. God bless him.
assalamu alykum
aap ki ghazal padhne ko mili kafi achchi koshish hai kisi achchye shyer se islah lijiye beher mai likhna seekh jaengey shayri wali tamaam khobiyan aap mai hain
guldehelvi .karachi pakistan
aap ki ghazal padhi achchi koshish hai aap ke under shyeron wali tamaam khubiyan hai
kisi achchye shyer se islah lijiye beher mai likhna aa jaye ga
mubarik baad ke saath
guldehelvi karachi pakistan
इस पोस्ट में संकलित ग़ज़लों को शिल्प के एतबार से कुछ और समय देना जरूरी है
भविष्य के लिए अनेकानेक शुभकामनाएं