मैंने उसे बताया कि मैं लिखता हूँ कविता तो वह उदास हो गया
आज असुविधा पर नागपुर में रहने वाले कवि पुष्पेन्द्र फाल्गुन की कवितायें...साथ में उन्हीं द्वारा भेजा परिचय
पिता हरिराम मिश्र एक कोयला मजदूर रहे. माँ गृहिणी. सेवानिवृति के पश्चात पिता किसानी कर रहे हैं मध्य प्रदेश के सबसे पिछड़े जिले रीवा के एक अत्यंत पिछड़े गाँव चंदई में.मैं नागपुर में रहता हूँ. यहीं से एक मासिक पत्रिका 'फाल्गुन विश्व' का प्रकाशन-संपादन कर रहा हूँ. पूर्णकालिक मसिजीवी हूँ. जीवन यापन के लिए पत्रकारिता, अनुवाद एवं विज्ञापन एजेंसियों के लिए कॉपी राइटिंग करता रहता हूँ. २००७ में वागर्थ के कविता नवलेखन प्रतियोगिता में पुरस्कृत हुआ. पत्र-पत्रिकाओं में कभी रचनाएं नहीं भेज पाया. पहली और आखरी बार वागर्थ में ही छपी हैं कविताएँ. २००७ में ही १९९७ में छपने गई कविता की किताब 'सो जाओ रात' छाप कर आई, नागपुर के विश्वभारती प्रकाशन से.
जादू!
माँ की उम्मीद
पिता के विश्वास
पत्नी के स्वप्न
बेटी की आस
बेटे की इच्छा में मिलाता है अपना परिश्रम
और बो देता है
माँ की उम्मीद
पिता के विश्वास
पत्नी के स्वप्न
बेटी की आस
बेटे की इच्छा में मिलाता है अपना परिश्रम
और बो देता है
हड्डियों के जोड़ से निचोड़
कतरा-कतरा पसीने से सींचता है
इंच-इंच जमीन
कमाल है कि हर साल
कपास, सोयाबीन, बाजरा, धान और तूअर के खेतों में उगती है
सिर्फ लाशों की फसल!
कतरा-कतरा पसीने से सींचता है
इंच-इंच जमीन
कमाल है कि हर साल
कपास, सोयाबीन, बाजरा, धान और तूअर के खेतों में उगती है
सिर्फ लाशों की फसल!
कि कहीं बड़ी होती है भीतर की दुनिया
बाहर की दुनिया से
कहीं-कहीं बड़ी होती है
भीतर की दुनिया
भीतर की दुनिया में बड़े होकर ही
हुआ जा सकता है इंसान
पायी जा सकती है इंसानियत
भीतर की दुनिया में बड़े होकर ही
बनाई जा सकती है बाहर की दुनिया
और बेहतर और सुन्दर और जीने लायक
भीतर की दुनिया में बड़े होकर ही
खिला जा सकता है जैसे फूल
उड़ा जा सकता है जैसे तितली
भीतर की दुनिया में बड़े होने के लिए
अपरिहार्य होती है बाहर की दुनिया
और उसकी ज़मीन-उसका आसमान
उसकी रोशनी-उसका अँधेरा
उसकी हवा-उसका पानी
उसकी संस्कृति-उसका इतिहास
जो भीतर से बड़े नहीं होते
वे बाहर की दुनिया में
रह जाते हैं चार-अंगुश्त छोटे
हर समय, हर जरूरत, हर मौके
कविता
वह एक अट्ठाइस-तीस के दरमियानी नौजवान था।
वह मुझे रोजाना मिलता बाग में फूलों को देखकर मुस्कुराता हुआ।
मैं जब पहुँचता वहाँ तो वह बस मुस्कुरा रहा होता
मैं जब लौटता वहाँ से तो भी वह बस मुस्कुरा रहा होता।
एक दिन बगीचे के चौकीदार ने बताया
'वह आँखों से नहीं देख सकता'
मैंने देखा, वह उस समय भी देख रहा था फूलों को।
मुझे करीब पाकर वह बोला,
'मुस्कुराने के लिए भला आँखों का भी कोई काम है'
उसकी बात सुनकर मैं जोर से हँस पड़ा था
इतनी जोर से कि मेरी हँसी की आवाज सुनकर
उसने अपनी मुस्कुराहट को और चौड़ा कर लिया था
और फिर मेरे साथ
वह भी जोर - जोर से हँसने लग पड़ा था
इतनी जोर से कि
बगीचे का बूटा-बूटा मुस्कुरा पड़ा था।
बगीचे जाने के नाम से ही अब मेरे लबों पर कौंध पड़ती मुस्कुराहट
वहाँ वह दिखाई देता तो मुस्कुराहट हँसी में बदलती
और फिर रोज-रोज हमारे साथ मुस्कुराती यह दुनिया।
एक दिन मैंने उसे बताया कि मैं लिखता हूँ कविता
तो वह उदास हो गया
वह उदास हो गया तो मैं उदास हो गया
मैं उदास हो गया तो मेरी कविता उदास हो गई
फिर हमारी उदासी से उदास हो गई यह दुनिया
और एक दिन उदास-उदास स्वर में
अत्यंत वेदना के साथ उसने पूछा मुझसे
'कविता में भला लिखने का क्या काम'
उसका सवाल सुन मैं हँस पड़ा जोर से
इतने जोर से कि मुस्कुरा उठा वह
और उसको मुस्कुराते देख मेरी हँसी की तान और बढ़ गई
और मुझे हँसते देख जोर-जोर से वह भी खिलखिलाकर हँस पड़ा
इतनी जोर से कि खिलखिला उठी दुनिया।
उस दिन शाम को मैं अपनी लिखी कविताओं को झोंक आया हूँ
फुटपाथ पर झोपड़ा बनाए उस भिखारी के चूल्हे में
चूल्हें में बनावट की ईंधन ने कमाल किया
और चूल्हे से चट-चट की आवाज के साथ जोर से जलने लगे मेरी कविताओं से रंगे पन्ने
इतने जोर से कि उस भिखारी के चारों बच्चे खिलखिलाकर हँस पड़े
और अपनी मुट्ठी में चूल्हे की तेज लौ पकड़ने का खेला खेलने लगे
उस दिन नींद के पहले बच्चों को मिल गया था खाना।
रोशनी
आग में नहीं
भूख में होती है रोशनी
आशाएँ
कभी राख नहीं होती
बालसुलभ रहती है
हिम्मत, ताउम्र
तो वह उदास हो गया
वह उदास हो गया तो मैं उदास हो गया
मैं उदास हो गया तो मेरी कविता उदास हो गई
फिर हमारी उदासी से उदास हो गई यह दुनिया
और एक दिन उदास-उदास स्वर में
अत्यंत वेदना के साथ उसने पूछा मुझसे
'कविता में भला लिखने का क्या काम'
उसका सवाल सुन मैं हँस पड़ा जोर से
इतने जोर से कि मुस्कुरा उठा वह
और उसको मुस्कुराते देख मेरी हँसी की तान और बढ़ गई
और मुझे हँसते देख जोर-जोर से वह भी खिलखिलाकर हँस पड़ा
इतनी जोर से कि खिलखिला उठी दुनिया।
उस दिन शाम को मैं अपनी लिखी कविताओं को झोंक आया हूँ
फुटपाथ पर झोपड़ा बनाए उस भिखारी के चूल्हे में
चूल्हें में बनावट की ईंधन ने कमाल किया
और चूल्हे से चट-चट की आवाज के साथ जोर से जलने लगे मेरी कविताओं से रंगे पन्ने
इतने जोर से कि उस भिखारी के चारों बच्चे खिलखिलाकर हँस पड़े
और अपनी मुट्ठी में चूल्हे की तेज लौ पकड़ने का खेला खेलने लगे
उस दिन नींद के पहले बच्चों को मिल गया था खाना।
रोशनी
आग में नहीं
भूख में होती है रोशनी
आशाएँ
कभी राख नहीं होती
बालसुलभ रहती है
हिम्मत, ताउम्र
जरूरत
अविष्कार की जननी नहीं, पिता है
लौ लगे जीवन ही
अँधेरे का रोशनदान बन पाएंगे।
जारी तमाशा
अँधेरे का रोशनदान बन पाएंगे।
जारी तमाशा
उनींदी ऑंखें जब नहीं सुन पाती दस्तक
भुरभुरी दीवार में आसान होती है सेंध
छिटक जाती है सांकल अपने बिंब से
तब तक जरूरत का दरवाजा
आगमन-प्रस्थान के औपचारिक द्वार में तब्दील हो चुका होता है।
ले जानेवाले अपने पसंदीदा बक्से के लिए
हटाते हैं बक्सों की परत
उन्हें मालूम है कि किस बक्से के साथ कितना नफा-नुकसान जुड़ा है
आँख खुलने पर भी
लंबा समय लगता है इस यकीन पर कि वही बक्सा चोरी हुआ है
जिसमें सबसे कीमती सामान तह कर रखा गया था।
दिल धक्क है, जुबान सुन्न
दूसरों का तमाशा बनाने की हमारी आदत
हमारी देहरी पर भी खींच लाती है तमाशबीनों की भीड़
हर तमाशाई के पास होती है सालाहियत की शहनाई
और पहचान कि किसने आपका बक्सा चोरी किया है।
आप चाहते हैं कि भीड़ सहानुभूति जताए
जो हुआ उसे भूल जाने की बात कहे
दिलासा दे कि ईश्वर की शायद यही मर्जी थी
या कहे कि गीता में भगवान ने कहा है कि जो होता है अच्छे के लिए होता है
और यह कहना न भूले कि इससे आपकी प्रतिष्ठा पर नहीं आएगी कोई आंच
लेकिन भीड़ आपकी तमाम कमजोरियों से वाकिफ है
पुचकारने, फुसलाने, मनाने, समझाने के लिए नहीं इकट्ठा है भीड़
उसकी उंगली के हर इशारे पर आप हैं
और खीझकर कहना ही होता है आपको
धत्त तेरे की ईश्वर की, धत्त तेरे की भगवान की!
हर घटना के लिए बड़ों के पास चश्मदीद-ए-चश्मा है
कौतुहल के आईने पर छोटों का हक है
आपको मिलते हैं कई-कई नुस्खे
दावा है कि इनमें से किसी से भी ढूंढ सकते हैं आप
अपना कीमती सामानों वाला बक्सा।
कैसी विडंबना!
हर नुस्खा ले जाता है नजूमी के पास
जिसके पास तैयार है नाम, वेशभूषा, आवाज, चेहरा-मोहरा
कि उनमें से चुन लीजिए आप अपने मतलब का चोर।
एक बक्सा जाते-जाते आपको दे जाता है
जीवन भर की कहानी
और आपके चाहने वालों को प्रगट करने के लिए चिरंतन अफसोस।
जो नुस्खों पर अमल नहीं करते
उन्हें करनी होती है आजीवन परिक्रमा
पुलिस, वकील, अदालत और रिश्वत की।
टिप्पणियाँ
अशोक जी का आभार !
behad gahre hai aap ki kavitaae . jeevan parichay ti tarah . achcha laga .
saadar