विजय सिंह के जन्मदिन पर बधाई....
आज मेरे मित्र और हिन्दी के महत्वपूर्ण कवि विजय सिंह का जन्मदिन है. समकालीन सूत्र के संपादक विजय जनपदीय चेतना के कवि हैं जिनकी कविता में छत्तीसगढ़ सांस लेता है...'बंद टाकीज' उनका संकलन और उनके घर का पता ही नहीं, छात्तीसगढ़ का भी पता है....अपनी खुशियों, अपने दुखों और अपनी विडंबनाओं के साथ उनका देस उनकी कविताओं में आकार लेता है. उनके सक्रिय और रचनात्मक जीवन के एक और वर्ष के लिए ढेरों शुभकामनाएँ...और यह उपहार...
यश के लिए
अँधेरे की काया पहन
चमकीले फूल की तरह
खिल उठती है रात
अँधेरा, धीरे से लिखता है
आसमान की छाती पर
सुनहरे अक्षरों से
चाँद-तारे
और
मेरी खिड़की में
जगमग हो उठता है
आसमान
अक्सर रात के बारह बजे
मेरी नींद टूटती है
खिड़की में देखता हूँ
चाँद को
तारों के बीच
हँसते-खिलखिलाते
ठीक इसी समय
नींद में हँसता है मेरा बेटा
बेटे की हँसी में
हँसता है मेरा समय।
अँधेरे की काया पहन
चमकीले फूल की तरह
खिल उठती है रात
अँधेरा, धीरे से लिखता है
आसमान की छाती पर
सुनहरे अक्षरों से
चाँद-तारे
और
मेरी खिड़की में
जगमग हो उठता है
आसमान
अक्सर रात के बारह बजे
मेरी नींद टूटती है
खिड़की में देखता हूँ
चाँद को
तारों के बीच
हँसते-खिलखिलाते
ठीक इसी समय
नींद में हँसता है मेरा बेटा
बेटे की हँसी में
हँसता है मेरा समय।
डोकरी फूलो
धूप हो या बरसात
ठण्ड हो या लू
मुड़ में टुकनी उठाए
नंगे पाँव आती है
दूर गाँव से शहर
दोना-पत्तल बेचने वाली
डोकरी फूलो
डोकरी फूलो को
जब भी देखता हूँ
देखता हूँ उसके चेहरे में
खिलता है जंगल
डोकरी फूलो
बोलती है
बोलता है जंगल
डोकरी फूलो
हँसती है
हँसता है जंगल
क्या आपकी तरफ़
ऎसी डोकरी फूलो है
जिसके नंगे पाँव को छूकर, जंगल
आपकी देहरी को
हरा-भरा कर देता है?
हमारे यहाँ
एक नहीं
अनेक ऎसी डोकरी फूलो हैं
जिनकी मेहनत से
हमारा जीवन
हरा-भरा रहता है।
ठण्ड हो या लू
मुड़ में टुकनी उठाए
नंगे पाँव आती है
दूर गाँव से शहर
दोना-पत्तल बेचने वाली
डोकरी फूलो
डोकरी फूलो को
जब भी देखता हूँ
देखता हूँ उसके चेहरे में
खिलता है जंगल
डोकरी फूलो
बोलती है
बोलता है जंगल
डोकरी फूलो
हँसती है
हँसता है जंगल
क्या आपकी तरफ़
ऎसी डोकरी फूलो है
जिसके नंगे पाँव को छूकर, जंगल
आपकी देहरी को
हरा-भरा कर देता है?
हमारे यहाँ
एक नहीं
अनेक ऎसी डोकरी फूलो हैं
जिनकी मेहनत से
हमारा जीवन
हरा-भरा रहता है।
*डोकरी- बुढ़िया
पक रहा है जंगल
अप्रैल का महीना लौट रहा है
जंगल मे
और
सूखे पत्तों की खड़खड़ाहट में
रच रही हैं चींटियाँ अपना समय
तपते समय में
उदास नहीं हैं
जंगल के पेड़
उमस में खिल रही हैं
जंगल की हरी पत्तियाँ
पेड़ की शाखाओं में
आ रहे हैं फूल
आम अभी पूरा पका नहीं है
चार तेन्दू पक रहे हैं
पक रहे हैं
जंगल में क़िस्म-क़िस्म के फूल-पौधे
सावधान।
अभी पक रहा है जंगल।
और
सूखे पत्तों की खड़खड़ाहट में
रच रही हैं चींटियाँ अपना समय
तपते समय में
उदास नहीं हैं
जंगल के पेड़
उमस में खिल रही हैं
जंगल की हरी पत्तियाँ
पेड़ की शाखाओं में
आ रहे हैं फूल
आम अभी पूरा पका नहीं है
चार तेन्दू पक रहे हैं
पक रहे हैं
जंगल में क़िस्म-क़िस्म के फूल-पौधे
सावधान।
अभी पक रहा है जंगल।
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