कुमार अम्बुज का नया संकलन - अमीरी रेखा
हिन्दी के अत्यंत महत्वपूर्ण कवि कुमार अम्बुज का नया कविता संकलन 'अमीरी रेखा' अभी हाल में ही 'राधाकृष्ण प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली' से छपकर आ गया है. 'किवाड़', 'क्रूरता' और 'अतिक्रमण' जैसे कविता संकलनों और 'इच्छाएं' जैसे बिल्कुल अलग तरह के कहानी संकलन से हिन्दी में एक विशिष्ट स्थान बनाने वाले अम्बुज जी का नया संकलन उनकी सतत सक्रियता का पता देता है. 'असुविधा' की ओर से उन्हें हार्दिक बधाई के साथ प्रस्तुत हैं इस संकलन से कुछ कविताएँ.
किताब यहाँ से प्राप्त की जा सकती है.
अमीरी रेखा
मनुष्य होने की परंपरा है कि वह किसी कंधे पर सिर रख देता है
और अपनी पीठ पर टिकने देता है कोई दूसरी पीठ
ऐसा होता आया है, बावजूद इसके
कि कई चीजें इस बात को हमेशा कठिन बनाती रही हैं
और कई बार आदमी होने की शुरुआत
एक आधी-अधूरी दीवार हो जाने से, पतंगा, ग्वारपाठा
या एक पोखर बन जाने से भी होती है
या जब सब रफ्तार में हों तब पीछे छूट जाना भी एक शुरुआत है
बशर्ते मनुष्यता में तुम्हारा विश्वास बाकी रह गया हो
नमस्कार, हाथ मिलाना, मुसकराना, कहना कि मैं आपके
क्या काम आ सकता हूँ-
ये अभिनय की सहज भंगिमाएँ हैं और इनसे अब
किसी को कोई खुशी नहीं मिलती
शब्दों के मानी इस तरह भी खत्म किये जाते हैं
तब अपने को और अपनी भाषा को बचाने के लिये
हो सकता है तुम्हें उस आदमी के पास जाना पड़े
जो इस वक्त नमक भी नहीं खरीद पा रहा है
या घर की ही उस स्त्री के पास
जो दिन-रात काम करती है
और जिसे आज भी सही मजदूरी नहीं मिलती
बाजार में तो तुम्हारी छाया भी नजर नहीं आ सकती
उसे चारों तरफ से आती रोशनियॉं दबोच लेती हैं
वसंत में तुम्हारी पत्तियाँ नहीं झरतीं
एक दिन तुम्हारी मुश्किल यह हो सकती है
कि तुम नश्वर नहीं रहे
तुम्हें यह देखने के लिये जीवित रहना पड़ सकता है
कि सिर्फ अपनी जान बचाने की खातिर
तुम कितनी तरह का जीवन जी सकते हो
जब लोगों को रोटी भी नसीब नहीं
और इसी वजह से साठ-सत्तर रुपये रोज पर तुम एक आदमी को
और सौ-डेढ़ सौ रुपये रोज पर एक पूरे परिवार को गुलाम बनाते हो
और फिर रात की अगवानी में कुछ मदहोशी में सोचते हो,
कभी-कभी घोषणा भी करते हो-
मैं अपनी मेहनत और काबलियत से ही यहाँ तक पहुँचा हूँ।
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नयी सभ्यता की मुसीबत
नयी सभ्यता ज्यादा गोपनीयता नहीं बरत रही है
वह आसानी से दिखा देती है अपनी जंघाएँ और जबड़े
वह रौंदकर आयी है कई सभ्यताओं को
लेकिन उसका मुकाबला बहुत पुरानी चीजों से है
जिन पर लोग अभी तक विश्वास करते चले आये हैं
उसकी थकान उसकी आक्रामकता समझी जा सकती है
कई चीजों के विकल्प नहीं हैं
जैसे पत्थर, आग या बारिश
तो यह असफल होना नहीं है
हमें पूर्वजों के प्रति नतमस्तक होना चाहिए
(उन्हें जीवित रहने की अधिक विधियाँ ज्ञात थीं
जैसे हमें मरते चले जाने की ज्यादा जानकारियाँ हैं)
ताड़पत्रों और हिंसक पशुओं की आवाजों के बीच
या नदी किनारे, घुड़साल में, पुआल पर
जन्म लेना कोई पुरातन या असभ्य काम नहीं था
अपने दाँत मत भींचो और उस न्याय के बारे में सोचो
जो उसे भी मिलना चाहिए जो माँगने नहीं आता
गणतंत्र की वर्षगाँठ या निजी खुशी पर इनाम की तरह नहीं
मनुष्य के हक की तरह हर एक को थोड़ा आकाश चाहिए
और खाने-सोने लायक जमीन तो चाहिए ही चाहिए
माना कि लोग निरीह हैं लेकिन बहुत दिनों तक सह न सकेंगे
स्वतंत्रता सबसे पुराना विचार है सबसे पुरानी चाहत
तुम क्या-क्या सिखा सकती हो हमें
जबकि थूकने तक के लिए जगह नहीं बची है
तुम अपनी चालाकियों में नयी हो
लेकिन तुम्हारे पास भी एक दुकानदार की उदासी है
जितनी चीजों से तुमने घेर लिया है हमें
उनमें से कोई जरा-सा भी ज्यादा जीवन नहीं देती
सिवाय कुछ नयी दवाइयों के
जो यों भी रोज-रोज दुर्लभ होती चली जाती हैं
और एक विशाल दुनिया को अधिक लाचार बनाती हैं
हँसो मत, यह मशीन की नहीं आदमी की चीख है
उसे मशीन में से निकालो
घर पर बच्चे उसका इंतजार कर रहे हैं
हम चाहते हैं तुम हमारे साथ कुछ बेहतर सलूक करो
लेकिन जानते है तुम्हारी भी मुसीबत
कि इस सदी तक आते-आते तुमने
मनुष्यों की बजाय
वस्तुओं में बहुत अधिक निवेश कर दिया है।
तानाशाह की पत्रकार-वार्ता
वह हत्या मानवता के लिए थी
और यह सुंदरता के लिए
वह हत्या अहिंसा के लिए थी
और यह इस महाद्वीप में शांति के लिए
वह हत्या अवज्ञाकारी नागरिक की थी
और यह जरूरी थी हमारे आत्मविश्वास के लिए
परसों की हत्या तो उसने खुद आमंत्रित की थी
और आज सुबह आत्मरक्षा के लिए करना पड़ी
और यह अभी ठीक आपके सामने
उदाहरण के लिए!
टिप्पणियाँ
ख़ास तौर पे :
"शब्दों के मानी इस तरह भी खत्म किये जाते हैं तब अपने को और अपनी भाषा को बचाने के लिये हो सकता है तुम्हें उस आदमी के पास जाना पड़े जो इस वक्त नमक भी नहीं खरीद पा रहा है या घर की ही उस स्त्री के पास जो दिन-रात काम करती है और जिसे आज भी सही मजदूरी नहीं मिलती"
मुझे अब भी लोगों का "कैसे हो भाई सा'ब" कह के उत्तर सुने बिना आगे बढ़ जाने से कोफ़्त होती है, दरअसल हम ऊँचे लोगों को ही सुनते हैं, और नीचे लोगों द्वारा ही सुने जाते हैं.
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"एक दिन तुम्हारी मुश्किल यह हो सकती है कि तुम नश्वर नहीं रहे
तुम्हें यह देखने के लिये जीवित रहना पड़ सकता है कि सिर्फ अपनी जान बचाने की खातिर तुम कितनी तरह का जीवन जी सकते हो"
और तब तक...
"कुछ हाथ लगेगा न कोई साथ जाएगा,
क्या बात है फ़िर क्यूँ कभी हसरत नहीं जाती."
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"उन्हें जीवित रहने की अधिक विधियाँ ज्ञात थीं जैसे हमें मरते चले जाने की ज्यादा जानकारियाँ हैं"
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"अपने दाँत मत भींचो और उस न्याय के बारे में सोचो जो उसे भी मिलना चाहिए जो माँगने नहीं आता"
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Really awesome and thought Provoking. पर हम लोगों कि विडम्बना है कि हम बस सोच भर के रह जाते हैं. और खुश होते हैं कि कम-से-कम सोच तो रहे हैं...
..ये कुछ उसी तरह का एक्स क्यूज़ है जैसे:
"कभी-कभी घोषणा भी करते हो- मैं अपनी मेहनत और काबलियत से ही यहाँ तक पहुँचा हूँ।"
कविताओं का चयन भी अच्छा है