चाँद पर कोई बूढ़ी औरत नहीं रहती!
ग्वालियर में रहने वाले अमित उपमन्यु से मेरी मुलाक़ात कविता समय -१ के दौरान हुई. ट्रेनिंग से इंजीनियर, साफ्ट बाल के राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी, संगीत में प्रशिक्षित और साहित्य के प्रतिबद्ध पाठक अमित इन सब के साथ राजनीति में भी सक्रिय हैं...इन दिनों वे कुछ फिल्मों के स्क्रिप्ट पर भी काम कर रहे हैं. उनकी कविताओं से परिचय होना मेरे लिए उनके एक नए पहलू से रु ब रू होना था. समकालीन मुहाविरे में लिखी ये कवितायें अपनी अंतर्वस्तु में प्रगतिशील-यथार्थवादी धारा के व्यापक परिदृश्य का एक ज़रूरी हिस्सा लगती हैं. इनमें सबसे अलग लगने वाली बात की जगह सबके साथ लगने की बात ज़्यादा नज़र आती है. किसी विशिष्टता की जगह ये कवितायें एक आधुनिक युवा की आँखों से दुनिया को देखते हुए अपने समय, समाज से जद्दोजेहद की कवितायें हैं. असुविधा पर अमित का स्वागत....
निर्माण
जहाँ से मैं आया हूँ
वहाँ कोई नहीं समझेगा यह
भाषा
बेहतर है फिर से सो जाया
जाए
या खोजें कोई नया शहर
कई बार सोते रहना भी एक
खुशनसीबी है
बंद पलकों के नीचे से कई
जलजले गुज़र चुके होते हैं
बिना तुम्हारे आंसू या
पसीने से भीगे
और तुम्हारे सपने में नाचती
सिंड्रेला की सफ़ेद ड्रेस अब भी बेदाग़ है
खौलती बातें हर कान के लिए
नहीं होतीं
गूढ़ समझे जाने से अच्छा है
मूढ़ समझा जाना
ज्वालामुखी आंधी-तूफानों से
अपने मन की बात नहीं कहते
वो सदियों तक ध्यानमग्न
रहते हैं एटलस की अंगड़ाई के इन्तेज़ार में|
फिर से सो जाना जागने से भी
ज्यादा मुश्किल है
नए शहर बनाने से आसान है
नयी ज़मीन का निर्माण
खौलती भाषाओँ का समंदर में
विसर्जन
छांट देता है जहरीली गैसें
और देता है एक ठंडी, मज़बूत
ज़मीन
नए रास्तों और नयी बस्ती के
लिए
जैसे एक सौम्य भाषा
हर कान के लिए
जानना
एक इंसान सबसे अच्छा शिक्षक
होता है
जब नहीं जानता कि वह कुछ
सिखा रहा है|
जानवर हमेशा अच्छे शिक्षक
होते हैं
वे सिर्फ सीखना जानते हैं|
निर्जीव वस्तुएँ एक
ज्ञानहीन दुनिया में रहती हैं
वे भेदभाव नहीं करतीं|
जानना एक अंतहीन सफ़र है
विस्मृति मोक्ष है
चाँद पर कोई बूढ़ी
औरत नहीं रहती!
मुझे पसंद नहीं वह होना
जिसमें कुछ होना कुछ और होने जैसा हो जाता है|
मुझे पसंद नहीं बारिश की बूंदों जैसा गाने
वाली कोयल
और न आवाज़ की नकल करते तोते
घोड़े पर सवार तलवारधारी योद्धा जैसे दिखने
वाले बादल का नाम किसी इतिहास में दर्ज नहीं
मुझे नफरत है उन परिंदों के झुण्ड से जो
उड़ते समय शार्क जैसे लगते हैं|
पुराने प्रेम और घृणा मुझमें बस उतने ही
समय जीवित रहते हैं जितना कोई पुराना अखबार
पुराने चेहरों की याद दिलाने वाले नए
चेहरों का मेरे भविष्य में प्रवेश निषेध है
मुझे पसंद नहीं वहाँ होना
जहां अपना होना किसी और
होने जैसा हो जाता है|
एक सत्य का सत्य होना बहुत ज़रुरी है
सत्य जैसा होना निरर्थक
परिचित की तलाश एक हिंसक
प्रक्रिया है –
जीवन, आनंद और सौंदर्य की हत्या
के लिए
चाँद पर सिर्फ गड्ढे हैं,
वहाँ कोई बूढ़ी औरत नहीं रहती!
जंगल
भेडिये पूनम के चाँद की ओर
मुंह उठाये रो रहे हैं
विषहीन साँपों को उनके चटख
लाल-पीले रंगों ने बचाया रखा है अब तक
अँधेरी रातें ही भूख मिटाती
हैं यहाँ
यहाँ ज़हर ही जीवन है|
पक्षियों और बंदरों का जो
शोर देता है तालाब पर पानी पीते हिरणों को शेर के आने की आहट-
वही चुपके-चुपके शिकारियों
से शेर की भी चुगली कर रहा है;
यहाँ किरदार समझना बहुत
मुश्किल है|
गिरगिट तेज़ी से रंग बदल रहे
हैं
पर चीज़ें रंग छोड़ने लगी
हैं|
एक जंगली सूअर के शिकार पर
लक्कड़बग्घों के झुण्ड दौड़े
चले आ रहे हैं;
आज तो दावत है!
यहाँ मृत्यु ही एकमात्र
उत्सव है
यहाँ सब सुखी हैं
कोई विद्रोह नहीं करता
क्यूंकि यहाँ कोई नियम नहीं|
मृत्यु पर दुःख यहाँ भी है
पर शोकसभाएं नहीं
विलाप नहीं
आंसू नहीं;
यहाँ दुख का अर्थ केवल
सन्नाटा है
क्यूंकि यहाँ सभ्य
लोग नहीं रहते,
यहां कोई शहर नहीं|
टिप्पणियाँ
Asmurari Nandan Misshra
मुझे उम्मीद है कि यह कवि कुछ दखल पैदा कर सकता है। बधाई और शुभकामनाएं।
"इंसान सबसे अच्छा शिक्षक तब होता है,जब जानता नही कि कुछ सीखा रहा है..........."
इस वाक्य ने मन में विशेष हलचल पैदा की,,,,,,,,,,
अमित भाई को इन मानीखेज कविताओं के लिए बहुत बहुत बधाई ....और अशोक जी को शुक्रिया !
लाजवाब रचनाएँ
अनु