मलयालम से दो कवितायें
बेटे! तू कितना भाग्यवान
(कैंसर से मरे एक बेटे की याद में माँ व परि-जनों के विलाप
से संबन्धित कविता)
- राधाकृष्णन तषकरा
(हिन्दी अनुवाद: यू. के. एस. चौहान)
काश! तू मेरी
बगल में होता, बस इसे ही याद कर
सिसकता रहता
हूँ हमेशा आज भी मैं
आँसुओं की
बरसात थमेगी नहीं कभी अब
अवशेष सारे समय
रोना ही लिखा है क्या?
तू छोड़ कर चला
गया, यह सत्य याद आने पर
अनजाने ही पीड़ा
से मुँह बा दूँगा
तेरी स्मृति
जीवन के अंतिम क्षणों तक इस भूमि पर
अश्रु-बिन्दुओं
के रूप में गिर-गिर कर बिखरती रहे।
तेरी मुझे दी
गई एकाकीपन की रातें
निरन्तर पुनर्जीवित
कर रहीं हैं स्वप्न
तेरी पद-चाप,
तेरी आवाज़ सुनते ही मैं
नित्य ही चौंक
कर, उठ कर बैठ जाता हूँ।
तेरा बच्चे की
तरह हठ करना
छीन-झपट कर ले
लेना मेरा भोजन
मूर्ख का भेष
धारण कर नाटक करते हुए
तेरा मुझे व
औरों को भी खिलखिलाकर हँसा देना।
झटका दे, पटक
कर गिरा देने पर लेटे-लेटे
जब मैं धोखा
देकर सोने का नाटक करता
तब दर्द से
कराहते हुए तेरा मुझे
बस एक मन्द
मुसकान से छका देना।
तेरे दिमाग में
फँसे उस कीड़े को
बिना तेरे जाने
निकाल कर बाहर फेंकना था न?
दर्द होने पर
हमेशा ही याद करना
पिता को, माँ
को, सहोदरों के दुःख को।
दर्द-निवारक
दवाओं को ही बना लिया भोजन तूने
बेहोशी की हालत
में लेट कर सोते समय
पास में बैठ कर
केवल रो ही तो सकते थे
तेरे पिता और
हम सब।
“मैं बस जाकर आता हूँ” यह मेरी परीक्षा के लिए
किसी प्रार्थी
को कहना चाहिए सफल होकर लौटने के लिए,
ऑपरेशन के लिए
जाते समय
धीमे से कहा था
जो वह तेरा विदाई-संदेश था क्या?
उस दिन उसे
सुनने वालों के हृदयों में
आज भी याद कर
रह-रह कर बह उठते हैं आँसू
नहीं बेटे! ये
परीक्षाएं तेरे लिए नहीं थीं
ये तो वास्तव
में तेरे सगे-संबन्धियों के लिए ही थीं।
तुझे ढँक कर
लाने वाली वह गाड़ी
हमेशा मेरी
आँखों के सामने झलकती-मिटती है
बरामदे के
चबूतरे पर तुझे लिटाते समय
मैं तुझे
चुम्बन देना तक भूल गया था मेरे बेटे!
अब सहा नहीं
जाता बेटे! बिना किसी देरी के तू
किसी भी तरीके
से समाप्त कर दे यह सब कुछ
आँखें बन्द
करने पर सदा रहेगा बस तेरा चेहरा सामने
और उसके बाद भी
याद करूँगा मैं कि तू कितना भाग्यवान!
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समय हो गया री (हास्य-कविता)
- राधाकृष्नन तषकरा
(हिन्दी अनुवाद: यू. के. एस. चौहान)
समय हो गया री!
देरी हो गई री!
मॉर्निंग का
एलार्म तूने रखा नहीं री!
जब-जब देरी
होवे, पानी डालने वाली
दूध लाने पहले
ही चली गई री!
निश्चिन्त सोए
हुए प्यारे बेटे को
पीछे से ठोंक
तुरत जगा देती री!
गाड़ी आ के चली
जाय तो क्या न हो
बाद में फिर तू
ही जा स्कूल भी छोड़े,
समय हो गया री!
देरी हो गई री!
चार बजे ही सो
के क्यों उठी नहीं री!
सुबह-सुबह हम
सब मशीन तो नहीं
मशीन के बिना
ही तो मशीन बने हैं!
गूँथे हुए आंटे
की गोलियों में से
जल्दी से
चार-पाँच रोटी बना री!
सब्जी के लिए
प्याज जल्दी से छील दे
चटनी बना दे
री! जल्दी दे-दे री!
शर्ट नहीं
प्रेस की, पैंट है पर बेल्ट नहीं
जूते हैं,
बाँधने को, लेस नहीं, मोजे नहीं
मौके पे बिजली
नहीं, कष्ट बड़ा है,
देखने पे लगे
सब है, मिले न ये मजबूरी!
तीर से भी
ज्यादा तेज गति से मैं भागता
ऑफिस को जाने
वाली बस को पकड़ने
देखें मेरी
पैंट सभी लोग जब स्टॉप के
जिप नहीं है
बन्द तभी समझ आए मेरी!
लटक चढ़ा,
फुटबोर्ड पे खड़े-खड़े याद किए
मैंने वे देवता
भी जो न शायद हों कहीं
हे भगवन! इस
समय तो हाथ नहीं जोड़ सकता
मैं बेचारा,
रक्षा करो आज आप मेरी!
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