लैटिन अमेरिका से कुछ कवितायें
पिछले दिनों लैटिन अमेरिकी कवियों के मार्टिन एस्पादा द्वारा संपादित संकलन ' पोएट्री लाइक ब्रेड' को पढ़ते हुए कई कविताओं का अनुवाद भी किया...उन्हीं में से कुछ
राबर्टो सोसा की कवितायें
राबर्ट सोसा |
साझा दुःख
हम
दुनिया भर की माँयें और बेटियाँ
यहाँ करती हैं
उनका इंतज़ार
सुनो हमें. “उन्हें ज़िंदा ले गए
थे वे, हम उन्हें ज़िंदा वापस चाहती हैं”
गौर करो हम पर, गिरफ्तार और लापता बाप और बेटे और
भाइयों के नाम पर
हम सर उठाये हुए करती हैं उनका इंतज़ार
एकसाथ यूं कि जैसे किसी घाव पर लगे हुए टाँके
कोई नहीं बाँट सकता
कोई नहीं अलगा सकता हमारे इस साझे दुःख को
स्मृति संख्या १ और २
मेरी सबसे पुरानी स्मृति
शुरू होती है एक जल कर खत्म हो चुकी स्ट्रीटलाईट
से
और खत्म होती है एक मुर्दा गली में बहते हुए
सार्वजनिक नल से
मेरी दूसरी स्मृति एक ताबूत से पैदा होती है
हिंसक रूप से मृत ताबूतों का एक जुलूस
खत
मैं दिलासा देता हूँ खुद को कि किसी दिन
किराने की इस बेचारी दुकान का मालिक
मेरे लिखे हुए पन्नों से कागज़ के ठोंगे बनाएगा
जिसमें भविष्य के उन लोगों को देगा काफी और शक्कर
जो ज़ाहिर वजूहात से
आज नहीं ले सकते काफी और शक्कर का स्वाद
मार्टिन एस्पादा की एक कविता
चर्च के चौकीदार जार्ज ने अंततः छोड़ दिया काम
कोई नहीं पूछता
कि कहाँ से हूँ मैं
निश्चित तौर पर
चौकीदारों के देश से ही होउंगा मैं
हमेशा से पोछा लगाया है मैंने इस फर्श पर
उनकी समझ के शहर के बाहर
तुम अवैध अप्रवासियों का कैम्प भर हो, होंडुरास
कोई नहीं ले सकता मेरा नाम
मैं स्नानागार के उत्सवों का मेजबान हूँ
शौचालय को रखता हूँ सरगर्म शराब की प्याली की तरह
नष्ट हो जाता है मेरे नाम का स्पेनिश संगीत
जब मेहमान शिकायत करते हैं
टायलेट पेपर्स के बारे में
सच ही होगा
जो वे कहते हैं
चपल हूँ मैं
पर व्यवहार बुरा है मेरा
कोई नहीं जानता
कि मैं छोड़ रहा हूँ आज रात यह काम
हो सकता है कि पोछा
एक मदमस्त समुद्री फेन की तरह
खुद ही चल पड़े
अपने धूसर रेशेदार जालों से
साफ करता हुआ फर्श
फिर लोग इसे ही कहेंगे जार्ज.
रॉक डाल्टन की एक कविता
तुम्हारी ही तरह
तुम्हारी ही तरह मैं
चाहता हूँ प्रेम को, ज़िंदगी को
चीजों की खुशबू को
जनवरी के आसमानी-नीले भू-दृश्य को
और मेरा भी लहू गर्म हो उठता है
और मैं हंसता हूँ आँखों में
और जानता हूँ आंसूओं की कलियों को
मुझे भरोसा है कि बहुत खूबसूरत है यह दुनिया
और रोटी ही की तरह कविता भी है सभी के लिए
और यह कि मेरी शिराएं नहीं खत्म होतीं मेरी ही
देह में
बल्कि जातीं हैं उनके साझा लहू तक
जो लड़ते हैं ज़िन्दगी की खातिर
प्रेम की खातिर
भू-दृश्यों की खातिर
छोटी-छोटी चीजों की खातिर
और सबके लिए रोटी और कविता के खातिर
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