नवनीत सिंह की कवितायें
नवनीत सिंह बिलकुल नए कवि हैं. जब उन्होंने इस इसरार के साथ कवितायें मेल कीं कि 'न पसंद आये तो भी प्रतिक्रिया दें' तो उनकी कविताओं को गौर से पढ़ना ज़रूरी लगा. इनमें अभी कच्चापन है, अनगढ़ता भी और शब्द स्फीति भी, लेकिन इन सबके साथ एक गहरी सम्बद्धता और रा एनर्जी है जो उनके भीतर की संभावना का पता देती है. भूमंडलोत्तर काल में युवा हुई पीढ़ी के अपने अनुभव हैं और उन्हें दर्ज़ कराने के लिए अपनी भाषा -अपनी शैली. वहां 'वृक्ष और टहनियों के दर्द' का एहसास भी है और 'धनुष-बाण के कारखाने बंद ' किये जाने का अनुभव भी. लोगों को पहचानने के उनके अपने नुस्खे हैं, जिनसे आप असहमत भले हों पर जिन्हें नज़रंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए. असुविधा पर इस नयी आवाज़ का स्वागत....
चित्र यहाँ से साभार |
उम्मीदें बढ़ रही है
हमारे निशाने मे चिड़िया की आँख नहीं थी,
वृक्ष की टहनियों और पत्तियों का दर्द था,
धनुष बाण के कारखाने बन्द करने के बाद
हमे निराशावादी कहना
हमारी संवेदना का मजाक उड़ाना था,
आशावादिता हारने के बाद,
खिसियाहटो को बचाने मे काम आयी,
उन गुरुओं को आज भी हमसे काफी उम्मीदे हैं,
जिनकी कक्षा मे शोर मचाना,
हमने अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझा,
उनकी उम्मीददें जानती थीं कि,
हम वहाँ भी चुप नही बैठेंगे,
जहाँ चुप्पियाँ हमारी मजबूरी होंगी
वे उम्मीदे बढ रही हैं,
एक कवि की कविताओ मे उमडते प्रेम की तरह,
किसान के खेतो मे पड़े हुये बीज की तरह
उम्मीदें अप्रत्याशित नहीं होती,
पूँजी की दौड मे पीछे रह जाने से,
जब जीवित हो जाती है रचनात्मकता,
उम्मीदें अपनी उम्मीदो के साथ,
बढ जाती है!
वृक्ष की टहनियों और पत्तियों का दर्द था,
धनुष बाण के कारखाने बन्द करने के बाद
हमे निराशावादी कहना
हमारी संवेदना का मजाक उड़ाना था,
आशावादिता हारने के बाद,
खिसियाहटो को बचाने मे काम आयी,
उन गुरुओं को आज भी हमसे काफी उम्मीदे हैं,
जिनकी कक्षा मे शोर मचाना,
हमने अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझा,
उनकी उम्मीददें जानती थीं कि,
हम वहाँ भी चुप नही बैठेंगे,
जहाँ चुप्पियाँ हमारी मजबूरी होंगी
वे उम्मीदे बढ रही हैं,
एक कवि की कविताओ मे उमडते प्रेम की तरह,
किसान के खेतो मे पड़े हुये बीज की तरह
उम्मीदें अप्रत्याशित नहीं होती,
पूँजी की दौड मे पीछे रह जाने से,
जब जीवित हो जाती है रचनात्मकता,
उम्मीदें अपनी उम्मीदो के साथ,
बढ जाती है!
जगह जो आज भी खाली है
सभी लोग नही ले पाते सबकी जगह,
और वहाँ तो बिल्कुल भी नही जहाँ
आशियाने भावनाओं की इंटों से बने थे,
बेशक दुनियाँ बिना किसी इतंजार के चलती होगी
नही समझते खाली जगह ,
ढूँढते है हमारी परछाइयाँ
हमारे आयतन और आकार को लेकर,
बुलाते है अतीत की दुहाई देकर,
बाँटते है हमारे हिस्से का दर्द,
बहते है समय की धार बन हमारी आँखो से
देखते है हमारे चेहरे को
जिनके पंखो की छाँव ने
बचा रखी थी हमारी मुस्कुराहट,हमारी उम्मीदे
मूर्ख है वे जो तुलनाये करते है संघर्षों की,
इच्छाएं एक होने के बाद भी
लङाईयाँ बराबर कहाँ होती है?
कुछ लोग मंजिलों से पहले
रोटियों के लिये लङते है
रोटियों और मंजिलो के बीच की जगह,
कहाँ भर पाती है,
सिर्फ मंज़िलों के लिये लड़ने वालों से,
और वहाँ तो बिल्कुल भी नही जहाँ
आशियाने भावनाओं की इंटों से बने थे,
बेशक दुनियाँ बिना किसी इतंजार के चलती होगी
नही समझते खाली जगह ,
ढूँढते है हमारी परछाइयाँ
हमारे आयतन और आकार को लेकर,
बुलाते है अतीत की दुहाई देकर,
बाँटते है हमारे हिस्से का दर्द,
बहते है समय की धार बन हमारी आँखो से
देखते है हमारे चेहरे को
जिनके पंखो की छाँव ने
बचा रखी थी हमारी मुस्कुराहट,हमारी उम्मीदे
मूर्ख है वे जो तुलनाये करते है संघर्षों की,
इच्छाएं एक होने के बाद भी
लङाईयाँ बराबर कहाँ होती है?
कुछ लोग मंजिलों से पहले
रोटियों के लिये लङते है
रोटियों और मंजिलो के बीच की जगह,
कहाँ भर पाती है,
सिर्फ मंज़िलों के लिये लड़ने वालों से,
पहचान के नुस्खे
व्यक्ति पहचान के नुस्खे,कुछ मैने भी ईजाद किये है,
अनुभव कर सके तो बच जाओगे वरना,
सैकङो दुर्दशायेँ झेलने के बाद ही पछताओगे,
कुछ स्त्रियाँ काँटेदार मछलियो की तरह होती है,
हाथो मे चुभने और सरकने मे माहिर,
इनकी कीमते बाजार नही आदमी तय करते है,
देह और वासना से घिरे हुये लोग,
तुम्हारे आर्दश कब से बन गये,
अपनी अज्ञानता को अन्धविश्वास बनाने से पहले सोचा होता कि,
दक्षिण दिशा मे मुँह करके खाने और पश्चिम की ओर पैर करके सोने से डरना,
एक तरह की लाईलाज बीमारी से ग्रसित होना है,
तुलसी बनने के लिये किसी स्त्री का होना जरूरी नही,
न ही किसी बुद्ध के लिये वृक्ष का,
किताबे भी तुम्हे मानवीय न बना पायी,
तब इसमे तुम्हारे गुरूओ का क्या दोष,
सुनो अपने बुजुर्गो की बातेँ जिन्हे अब तक बकवास मानते रहे
यदि मुझपर यकीन करने मे तुम्हारी ऊर्जा नष्ट हो रही है
तब सामने गौर से देखो और अनुभव जुटाओ,
बगल मे खड़ा आदमी तीसरे के साथ जैसे पेश आयेगा,
एक दिन तुम पर भी वही नुस्खा आजमायेगा,
जैसे आजमाया था गौरी ने जयचन्द के साथ,
तुम जिन्हें विनम्र समझने की भूल करते रहे,
उनसे धोखा खाने के बाद,
उन्हे गालियाँ देने मे शरमाओगे,
अतीत के पन्नो मे झाँकते हुये चिल्लाओगे,
अपनी विनम्रताओ से दूर होते हुये इंसानो के लिये!
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नवनीत सिंह
20जनवरी1988 को चन्दौली(उ0 प्र0) मे जन्म,अर्थशास्त्र से परास्नातक. ,नये लेखकों को पढने में रुचि है,अब तक कुछ कवितायें सिताब दियारा व नजरिया ब्लाग पर प्रकाशित,
संपर्क -महावीर रोड धानापुर -चन्दौली,वाराणसी,(उ0प्र0
पिन- 232105
मोबाईल -9616636302
ई मेल - navaneetgaharwar@gmail.com
अनुभव कर सके तो बच जाओगे वरना,
सैकङो दुर्दशायेँ झेलने के बाद ही पछताओगे,
कुछ स्त्रियाँ काँटेदार मछलियो की तरह होती है,
हाथो मे चुभने और सरकने मे माहिर,
इनकी कीमते बाजार नही आदमी तय करते है,
देह और वासना से घिरे हुये लोग,
तुम्हारे आर्दश कब से बन गये,
अपनी अज्ञानता को अन्धविश्वास बनाने से पहले सोचा होता कि,
दक्षिण दिशा मे मुँह करके खाने और पश्चिम की ओर पैर करके सोने से डरना,
एक तरह की लाईलाज बीमारी से ग्रसित होना है,
तुलसी बनने के लिये किसी स्त्री का होना जरूरी नही,
न ही किसी बुद्ध के लिये वृक्ष का,
किताबे भी तुम्हे मानवीय न बना पायी,
तब इसमे तुम्हारे गुरूओ का क्या दोष,
सुनो अपने बुजुर्गो की बातेँ जिन्हे अब तक बकवास मानते रहे
यदि मुझपर यकीन करने मे तुम्हारी ऊर्जा नष्ट हो रही है
तब सामने गौर से देखो और अनुभव जुटाओ,
बगल मे खड़ा आदमी तीसरे के साथ जैसे पेश आयेगा,
एक दिन तुम पर भी वही नुस्खा आजमायेगा,
जैसे आजमाया था गौरी ने जयचन्द के साथ,
तुम जिन्हें विनम्र समझने की भूल करते रहे,
उनसे धोखा खाने के बाद,
उन्हे गालियाँ देने मे शरमाओगे,
अतीत के पन्नो मे झाँकते हुये चिल्लाओगे,
अपनी विनम्रताओ से दूर होते हुये इंसानो के लिये!
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नवनीत सिंह
20जनवरी1988 को चन्दौली(उ0 प्र0) मे जन्म,अर्थशास्त्र से परास्नातक. ,नये लेखकों को पढने में रुचि है,अब तक कुछ कवितायें सिताब दियारा व नजरिया ब्लाग पर प्रकाशित,
संपर्क -महावीर रोड धानापुर -चन्दौली,वाराणसी,(उ0प्र0
पिन- 232105
मोबाईल -9616636302
ई मेल - navaneetgaharwar@gmail.com
टिप्पणियाँ
पूँजी की दौड मे पीछे रह जाने से,
जब जीवित हो जाती है रचनात्मकता,
उम्मीदें अपनी उम्मीदो के साथ,
बढ जाती है!-----------
दौर पतझड़ का सही उम्मीद तो हरी है--
सहजता से कही गयी,गहन अनुभूति
सुंदर,सार्थक रचनायें
बधाई
आपके विचार की प्रतीक्षा में
आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
jyoti-khare.blogspot.in
कहाँ खड़ा है आज का मजदूर------?
जिनकी कक्षा मे शोर मचाना,
हमने अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझा,
उनकी उम्मीददें जानती थीं कि,
हम वहाँ भी चुप नही बैठेंगे,
जहाँ चुप्पियाँ हमारी मजबूरी होंगी...
Bahut khoob...
एक तरह की लाईलाज बीमारी से ग्रसित होना है,''
कवि का कच्चापन बरकरार रहे..
अच्छी कविताएँ हैं।
उनसे धोखा खाने के बाद,
उन्हे गालियाँ देने मे शरमाओगे,
अतीत के पन्नो मे झाँकते हुये चिल्लाओगे
नवनीत की कविताएँ मोहती हैं .यद्यपि कहीं कहीं धूमिल उनमे बोलते दीखते हैं ....पर विकास पुराने पदचिन्हों पर पाँव रख आगे बढने से भी होता है .शुक्रिया "असुविधा " नई कलम को बड़ा मौका देने के लिए . बधाई नवनीत ...............शुभकामनाएं तो हैं ही :)
नवनीत की कविताएँ मोहती हैं .यद्यपि कहीं कहीं धूमिल उनमे बोलते दीखते हैं ....पर विकास पुराने पदचिन्हों पर पाँव रख आगे बढने से भी होता है .शुक्रिया "असुविधा " नई कलम को बड़ा मौका देने के लिए . बधाई नवनीत ...............शुभकामनाएं तो हैं ही :)
तुम्हारे आर्दश कब से बन गये,
अपनी अज्ञानता को अन्धविश्वास बनाने से पहले सोचा होता कि,
दक्षिण दिशा मे मुँह करके खाने और पश्चिम की ओर पैर करके सोने से डरना,
एक तरह की लाईलाज बीमारी से ग्रसित होना है,
Badhiya badhi or subhkamnayen