यह किसकी आत्महत्या है- देवेश की कविता

देवेश कविता लिख तो कई सालों से रहा है लेकिन अपने बेहद चुप्पे स्वभाव के कारण प्रकाश में अब तक नहीं आ सका. आज जब प्रतिबद्धता साहित्य में एक अयोग्यता में तब्दील होती जा रही है तो उसकी कवितायें एक ज़िद की तरह असफलता को अंगीकार करती हुई आती है. उसकी काव्यभाषा हमारे समय के कई दूसरे कवियों की तरह सीधे अस्सी के दशक की परम्परा से जुड़ती है और संवेदना शोषण के प्रतिकार की हिंदी की प्रतिबद्ध परम्परा से. इस कविता में उसने विदर्भ के गाँवों की जो विश्वसनीय और विदारक तस्वीर खींची है वह इस विषय पर लिखी कविताओं के बीच एक साझा करते हुए भी एकदम अलग है. इस मित्र और युवा कवि का स्वागत असुविधा पर. जल्द ही उसकी कुछ और कवितायेँ यहाँ होंगी. 





यह किसकी आत्महत्या है

(एक)

श्मशान का जलता अँधेरा चीखता है बहुत तेज़
शवगंध से फटती है नाक धरती की

इन सबसे बेपरवाह डोम,
सीटी बजाता, झूमता, चुनता है हड्डियाँ
और नदी में डाल देता है..

डोम राजा है
शव प्रजा
नदी अवसाद में है..

(दो)

बहुत दूर से चली आती है बांसुरी की आवाज़
सनकहवा बांसुरी बजाता जा रहा है

भीड़ मारती है पत्थर ,
 वह मुस्कुराता है
चलता चला जाता है
बांसुरी के छिद्रों से रिसता है खून और मुख से आग

हवा उदास बहती है

(तीन)

साढ़े पचास किलो का आदमी कूदता है कुएँ में
फिर नहीं उठता
धप्प की बारीक़ आवाज़ उठती है..

परिवार कहता है खेत सूख गया था
लोग कहते हैं कुआँ सूख गया था
अखबार कहते हैं आदमी सूख गया था

बादलों ने आत्महत्या कर ली है,
ऐसा किसान कहते हैं..

(चार)

समय उलझा है अंडे और अंडकोष के बीच फर्क़ करने में

सिपहसालारी करती फौज खड़ी है,
बीच से गुज़रता है जनाज़ा जिसे उठाये चल रहा है पूरा देश
उसके पाँव में बंधी जंजीर से मचता है कोलाहल
और
राजा है कि नाचता है

'राजा बहरा है' बुदबुदाती है लाश

(पाँच)

घरों में आग नहीं है
फिर भी उठता रहता है धुआँ
मरोड़ें ढंकी जाती हैं झंडों से
जिसे देख के कै कर देता है कलमघसीट
'बहानों के भी तमाम बहाने हैं,मौत के भी'

सियाही जोर से रोती है,
इतनी कि कागज़ को भी सुनाई नहीं देता 
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सम्पर्क : vairagidev@gmail.com 


टिप्पणियाँ

Anuradha Singh ने कहा…
थोड़े में बहुत कह देने की बारीकी है, एक एक शब्द कई कई त्रासदियाँ बयान कर रहा है, बहुत पसंद आने वाली कविताएँ।
Onkar ने कहा…
बेहतरीन प्रस्तुति
Pranjal Dhar ने कहा…
Raajneetik, hastakshepkaari aur sundar kavita! Behad marmvedhi. Deveshji ko hardik badhaai aur asuvidha ka kotishah aabhaar. Regards,
Ek sudhi paathak, Pranjal Dhar
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, डे लाईट सेविंग - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
Bookishqan ने कहा…
शानदार कविताएँ हैं देवेश। पढ़ता हुआ आदमी किसी अंधे कुँएं में उतरता जाता है।
Shridharam ने कहा…
प्रिय देवेश, तुमने कविता की वो ताज़ा शब्दावली गढ़ ली है जिसकी दरकार समकालीन कविता को है। तुमसे हमेशा और बेहतर की आशा बनी रहेगी। बधाई।
Shridharam ने कहा…
प्रिय देवेश, तुमने कविता की वो ताज़ा शब्दावली गढ़ ली है जिसकी दरकार समकालीन कविता को है। तुमसे हमेशा और बेहतर की आशा बनी रहेगी। बधाई
बेनामी ने कहा…
लाजवाब !
जमशेद आज़मी ने कहा…
गहराईयों में झांक कर देखती हुई कविता।
Jay dev ने कहा…
बहुत खूब मित्र
neera ने कहा…
अल्प शब्दों में प्रभावशाली अभिवयक्ति, बेहतरीन
khalida ने कहा…



पता नहीं क्यों आपकी कविता पढ़ने के बाद आपका नाम देवेश की जगह दरवेश पढ़ गया बेहतरीन कविता

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