अमित उपमन्यु की ताज़ा कविता
अमित की कविताएँ आप पहले भी असुविधा पर पढ़ चुके हैं. लेकिन यह कविता अपनी भाषा और अपने बनक में पिछली कविताओं से काफी अलग है. बल्कि यों कहूँ कि यह आज में ज़्यादा विन्यस्त है. यह सहज भी है कि जिस तरह की घटनाएँ लगातार समाज में चल रही हैं उसमें एक संवेदनशील युवा उद्वेलित हो, ज़रूरी अक्सर यह है कि यह उद्वेलन तात्कालिकता के घेरे से बाहर निकले और एक मानीखेज़ स्टेटमेंट में बदल जाए. अमित की यह कविता ऐसा करने में सफल रही है.
Mary Frank की पेंटिंग यहाँ से साभार |
- अमित उपमन्यु
सौ सन्नाटों की रात
दो लोग
एक दूजे से
पीठ किए बैठे
हैं
दो अट्टहास कर
रहे हैं
जो दो घुप्प
अंधेरी रात में कविता-पाठ कर रहे हैं
चार लोगों का
कहना है बकवास कर रहे हैं
चार लोग
शोकचक्र को कांधे पर उठाये घूमते हैं
चार उसके शोक
में ताड़ी पीकर झूमते हैं
साहब का फिर
आना मुमकिन नहीं तो
इन आठ को
अग्रिम श्रद्धांजलि दे रहे हैं
मुर्दों में
मिले ज़िंदों को याद करके
सूखी-सूखी
हिचकियां ले रहे हैं
साहब रोना भी
चाहते थे
पर रोना आया
नहीं
कोई दुःख उनके
मन को भाया नहीं
वे रोने के
लिए
प्रॉपर
टाइमिंग का इंतज़ार कर रहे हैं
चार लोग
शोकचक्र के बोझ से दबकर
बारी-बारी मर
रहे हैं
2.
जम्हूरियत
जम्हूरियत जम्हूरियत हा हा!
कितना म्यूजिक
है!
कितना म्यूजिक
है इस वर्ड-विलास में
सिलेबस में
घुसेड़ो इसे थर्ड किलास में
बचपन से ही
डेमोक्रेसी का ज्ञान होना मांगता है
एक... दो...
तीन... चार
पांच... छह...
सात... आठ
इनमें से जो
मस्त लगे उसपे बिंदास सील ठोकने का
कुछ संपट ना
पड़े तो नोटा को वोट देने का
सिस्टम में
ऐसे ही काम चलने का मांगता है
पब्लिक का
गुस्सा किधर निकलने का मांगता है
लौंडों की
खोपड़ी की गर्मी कोई वेस्ट मटीरियल नहीं है
इसके पॉवर से
अपने बंगले पे बल्ब जलने का मांगता है
3.
ये जो दौर है
समय के माथे
पर फोड़ा है
इससे बहुत
मवाद रिस रही है
पांच लोग सारी
मवाद खा मुटिया रहे हैं
पिन्च्यानवे
उनका गू मिलने
की उम्मीद में
तालियां बजा
रहे हैं
एक कमसिन
तुकांत कविता
सीसीडी के
सामने खड़ी
पत्रकारिता और
चाटुकारिता का इंतजा़र कर रही है
वे तीनों बिना
हेलमेट बिना कंडोम
बाइक पर घूमने
जाएंगे
बाइक का नाम
भाषा है और यह 200 तर्क प्रति लीटर का एवरेज
देती है
350 सीसी हॉर्सपॉवर है
इतने
हॉर्सपॉवर पे विष्ठा का तुक निष्ठा तो क्या
प्रतिष्ठा से
भी मिलाया जा सकता है
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पेशा सीखा इंजीनियर का. शौक थियेटर का. बीच में साफ्टबाल भी खेलते रहे राष्ट्रीय स्तर पर. जूनून फिल्मों का. की नेतागिरी भी. दख़ल से जुड़े. अब मुंबई में स्क्रिप्ट लिखते भी हैं और एक इंस्टीच्यूट में सिखाते भी हैं.
संपर्क - amit.reign.of.music@gmail.com
टिप्पणियाँ
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रक्षाबन्धन की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
थोड़ी चमत्कृत करती हुईं, थोड़ी जुगुप्सा भरती हुई और थोड़ी संवेदना को कुरेदती हुईं ।