समानांतर साहित्य उत्सव की एक रपट - अनिमेष जोशी



रवीन्द्र मंच पर गुलज़ार हुए शब्द



मावठ के बाद सर्दी ने अपने पाँव फिर से पसारे! और देखते ही देखते समूचे राजस्थान पर इसका प्रभाव दिखाई पड़ा.  जनवरी के आखरी सप्ताह में जयपुर में तीन दिवसीय समानंतर साहित्य उत्सव संपन्न हुआ. एक साथपाँच स्थलों पर दिनभर कोई न कोई सत्र होते रहें. तो इस तरह की फॉर्मेट में एक आम श्रोता के लिए थोड़ी बहुत दुविधा रहती है! कि कौनसा सत्र अटेंड करें? वो एक साथ दो जगह पर तो मौजूद हो नहीं सकता!  इसी उधेड़बुन से दो चार होता हुआ मैं कुछ सत्रों को पूरा देख-सुन पाया, और कुछ स्थानों पर ज़रा सी देर ही रहा...ताका झाँकी वाले अंदाज में! बहुत सी चीज़े छुटने के बीच जो कुछ साथ ले आए, उन पर थोड़ी सी बात रख रहा हूँ -

किस्सागोई

इस सत्र में नदीम शाह से आदिल रज़ा मंसूरी की बड़ी दिलचस्प बात सुनने को मिली. दास्तानगोई के भिन्न भिन्न पहलू पर बात हुई. हमज़ानामा या दासता ए अमीर हमज़ा. जिसके अंदर अमीर हमज़ा के रोमांचक कारनामे दर्ज है...आज हमज़ानामा के तीन पांडुलिपि ही अस्तित्व में है. जिसमें से एक शम्सुर्रहमान फ़ारुखी के पास है...46 वॉल्यूम में फैला है पूरा हमज़ानामा. 2008 से महमूद फार्रुखी इसे भारत में कर रहे हैं. साथ ही नदीम शाह ने बताया कि आज भी सुल्तानपुर के आस-पास कुछ स्थानों पर किस्सागोई की रवायत जीवित हैं!

अच्छी कहानी क्या है

इस सत्र का मुख्य आकर्षण थे, हमारे समय के महत्वपूर्ण लेखक उदय प्रकाश. जिनसे दुर्गा प्रसाद अग्रवाल ने बात की. और संयोजक की भूमिका में रही उमा. इस सत्र से मुझे काफ़ी उम्मीद थीं. लेकिन यहाँ कहनियाँ पर बात होते-होते कब उदय जी की लेखनी पर पूरा सत्र घूम गया...इसका अंदाज़ किसी को नहीं रहा होगा. जो इस सत्र का मकसद नहीं था. मैं बहुत कहानियाँ पढ़ता हूँ तो पर्सनल लेवल पर मुझे बेहद निराशा हाथ लगी...

कश्मीर-विभ्रम और यथार्थ

जावेद शाह और अमित वांचू के साथ अशोक कुमार पांडेय ने बात की इस सत्र में. चूँकि अशोक कुमार पांडेय-कश्मीर नामालिख चुके है. तो इस सत्र को अलग-अलग एंगल से हमें समझाने में उनकी महती भूमिका रही. सेना और अलगाववादियों पर प्रकाश डाला गया. जावेद शाह ने अपनी पत्रकारिता के भिन्न-भिन्न अनुभव सांझा किए. मंदिर परिसर में घटा उनके साथ एक किस्सा भी सुनाया. यहाँ डॉक्टर अमित ने अपने बचपन के दिन याद करते हुए...स्कूल आते-जाते ग्रेनेड हमलों का उल्ल्लेख किया. करिश्मा के गाने-सेक्सी-सेक्सी से प्रेरित होकर. उन हमलों को महसूस करते हुए एक गीत भी बनाया था स्कूली दिनों में...आगे जाकर उन्होंने अपने दोस्तों के साथ एक रॉक बैंड भी फॉर्म किया था. 

व्याख्यान-फेसबुक और मिथ्या चेतना

इस सत्र में अशोक कुमार पाण्डेय से अविनाश त्रिपाठी ने बातचीत की. सोशल मीडिया पर जो ट्रोल किया जाता है, उस पर कुछ प्रकाश डाला गया. जहाँ अशोक कुमार पांडेय ने बताया कि आज से कुछ साल पहले तक हम ट्रोल शब्द का अर्थ भी नहीं जानते थे, लेकिन फेसबुक सरीखे माध्यम की वजह से ये आप चलन का हिस्सा बन गया है. इस माध्यम से सही गलत का पता लगाना बहुत मुश्किल है. हम यहाँ प्रतिक्रियावादी भी बन बैठते है. अविनाश ने उस ट्रेंड को सही नहीं बताया कि हर कोई लिख रहा है. यहाँ अशोक पाण्डेय ने इस बात पर आपत्ति जातते हुए अनामिका जी कि कही बात को फिर से कोट किया, “सब लिख ही रहे है, कोई बंदूक तो नहीं चला रहाइस सत्र को फेसबुक पर लाइव भी दिखाया गया. सत्र शुरू हुआ तब बहुत कम लोग उपस्थित थे. तो अशोक पांडेय ने अपना मोबाइल मुझे थमाते हुए, इसे लाइव करने को कहा. ताकि वो साथी इसका लाभ ले सके जो फेसबुक पर उनसे जुड़े है. इस माध्यम की ताकत भी यही है. जो पाठकों और मित्रों के एक बड़े वर्ग से हमें जोड़ता है. अपनी तमाम कमजोरीयों के बावजूद!

हां और ना के बीच स्त्री

इस सत्र का संयोजन सुजाता ने किया. और मंच पर रहे-सुधा अरोड़ा,नूर ज़हीर,उर्मिला शिरीष, रूपा सिंह व गीताश्री

यहाँ वुमन रिजर्वेशन बिल पर कुछ बातें हुई. भंवरी देवी पर सुधा अरोड़ा ने अपनी बात रखी. आज चल रहे फेक फेमिनिज्म पर नूर ज़हीर ने थोड़ा प्रकाश डाला. जिसे सुजाता ने अपनी तरफ से थोड़ा और विस्तार दिया. गीताश्री ने अपनी पत्रकारिता जीवन के अनुभव से कुछ किस्से साँझा किये. कैसे लडकियों को शाम को रुकने नहीं दिया जाता है...जल्दी घर जाने की हिदायत दी जाती है. बहुत-सी जगह भेदभाव साफ़-साफ़ दिखाई पड़ता हैं. रूपा सिंह ने मी टू को अपना नए स्वरूप में आगे जाते हुए वी टू की बात कही. यहाँ उनका आशय महिलाओं की एकजुटता को लेकर हैं...

रज़िया सज्जाद ज़हीर : आइना कलमनिग़ारी का:

नूर ज़हीर व शकील सिदिक्की ने इस सत्र की बागडोर संभाली, जबकि संयोजन की भूमिका में विनीत तिवारी रहें. यहाँ नूर ने इस आयोजकों को तहे दिल से शुक्रिया अदा किया. क्योंकि एक मंच को रज़िया ग्राम नाम दिया गया. उन्हें एक तरह का होमेज दिया गया! अम्मी-अब्बा पर बात करते हुए नूर जी बड़ी नोस्टालजिक महसूस कर रही थीं...शादी के तीसरे ही दिन अम्मी का पर्दा छुडवा दिया था अब्बा ने. दोनों ही सिगरेट पीने का शौकीन रहे. उन्होंने शादी के बाद ही अपनी शिक्षा पूरी की. उनकी दबंगई की बहुत से किस्से है. लखनऊ में इप्टा इकाई द्वारा पहली बार नाटक खेला गया था सन १९५३ में. जब बहुत सी मुसीबतों का सामना करना पड़ा था...लेकिन अम्मा डरी नहीं. पूरी टीम के साथ खड़ी रही.

कश्मीर का यथार्थ-जावेद शाह की नज़र में

ये डिजिटल प्रस्तुति थी. जहां हमें तस्वीरों द्वारा घाटी को समझाया गया. अशोक कुमार पांडेय भी मौजूद रहे इस सत्र में. उन्होंने तस्वीरों के पीछे की कहनियाँ बताने में जावेद शाह का साथ दिया. कुछ तस्वीरे रौगटे खड़े करने वाली थी. जिन्हें देखकर आपकी आँखें नम हो जाए...वहां का जीवन कितना कठिन है, जो यहाँ बैठकर समझा या जाना नहीं जा सकता हैं. हम अपनी चश्में से कश्मीरी आवाम को देखते है, जबकि रियल सिचुएशन बहुत भिन्न है. इस सत्र का बहुत ज्यादा प्रभाव मेरी मित्र जोली डुसेजा पर पड़ा. उन्होंने कश्मीर को जानने-समझने के लिए कश्मीरनामा किताब खरीदी. वहाँ लगीं पुस्तक प्रदर्शनी से. और उस किताब पर अशोक कुमार पांडेय और जावेद शाह का ऑटोग्राफ लिया!

प्रसंग शैलेन्द्र 

इस पूरे आयोजन का ये सबसे चर्चित सत्र कहा जा सकता है. सबसे ज्यादा श्रोता भी इस सत्र के लिए जुटे. युनूस खान की पुरसुकून आवाज़ में इस सत्र का संचालन किया गया. उनके साथ मंच पर नरेश सक्सेना, यादवेन्द्र, प्रहलाद अग्रवाल, जी एम रावत, इंद्रजीत सिंह, प्रदीप जीलवाने और शैलेन्द्र की बेटी अमला मजूमदार मौजूद रही. वो दुबई से इस सत्र के लिए आई थी...सबने अपने अपने शैलेन्द्र को रेखांकित किया. यहाँ दो किताबों का विमोचन भी होना था, लेकिन वो समय पर तैयार न होने के कारण टल गया. प्रदिम जीलवाने की किताब-सिनेमाई कबीर’, जहाँ उनके गीतों का बखान है. उनसे क्या अर्थ निकलते है...तो इंद्रजीत सिंह की किताब-धरती कहे पुकार के’, समय-समय पर लिखें गए लेखों का छोटा सा कोलाज है...उन लोगों का टेक है जो शैलन्द्र के करीबी रहे या उनके काम को बड़ी गहराई से समझते है. इस सत्र के दो मुख्य आकर्षण; जो अन पर बात से इतर थे. एक तो नेरश सक्सेना जी द्वारा माउथ ऑर्गन पर एक गीत की प्रस्तुति. साथ ही सुपर 60 क्लब के सदस्यों द्वारा शैलेन्द्र के चुनिंदा गीतों की मेडली.

इन सत्रों के आलवा कुछ सत्र भागते-तोड़ते अटेंड किए. जो स्मृति में तो दर्ज है लेकिन उन पर ढंग से लिख पाना संभव नहीं. यहाँ कुछ लेखक मित्रों से भी छोटी-छोटी गुफ्तगू हुई. इनमें प्रभुख रहे-अशोक कुमार पाण्डेय, सुजाता, चरण सिंह पथिक व प्रदीप जिलवाने...



इस उत्सव में तीनों दिन जोली डूसेजा बनी रही. कुछ समय पहले ही उनसे दोस्ती हुई. वो हिंदी ज्यादा पढ़ती भी नहीं, फिर भी अपने काम से छुट्टी लेकर आई. और अपना समय दिया. ये बहुत बड़ी बात है मेरे लिए. जो मुझे हमेशा याद रहेंगी.

पिछले साल के मुकाबले इस बार सत्र काफ़ी ज्यादा संख्या में थे. जो मुझे ठीक नहीं लगा. हम इसे दर्शक, लेखक और कार्यकता की हवाले से देखे तो...ये सब पर भारी है. इस पर विचार करने की जरूरत है. ये जे.एल.एफ जैसा मोडल न बन जाए! दो सत्र पैरेलल चलते रहे. श्रोता भी सही से चुनाव कर पाए. और आयोजक भी परेशान न हो! क्योंकि राजस्थान को अभी बहुत लंबा सफ़र तय करना है. गर हम कुछ रचने व गढ़ने की एंगल से देखे तो कुछ खास काम नहीं हो रहा है. मैं खुद कहानी चर्चा आयोजित करता हूँ. ज़मीनी स्तर से बखूबी वाकिफ़ हूँ. पता नहीं अलग-अलग लेखक संघटन इसे किस तरह देखते है. उम्मीद करते हैं कि इसकी अगली कड़ी और बेहतर हो! लेखकों की विषय आधारित तैयारियां और ढंग की रहे.                       





टिप्पणियाँ

कहानियों को लेकर आपकी समझ और सोच बेहद साफ है। ऐसी संजीदगी दुर्लभ है।
अच्छी रपट।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (03-02-2019) को "चिराग़ों को जलाए रखना" (चर्चा अंक-3236) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Farooq Afridy ने कहा…
शानदार आयोजन और शानदार रिपोर्ट पर
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।
Nitish Tiwary ने कहा…
सुंदर प्रस्तुति।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
iwillrocknow.com

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