सीरिया से कविताएँ - मराम अल-मासरी
सीरिया
विश्व मानचित्र पर एक घाव सा है या बेहतर होगा यह कहना कि सीरिया मनुष्यता की देह
पर एक घाव सा है. मराम अल-मासरी की कविताएँ उन घावों और खरोंचों को उनकी पूरी
तल्खी के साथ अपनी कविताओं में ले आती हैं तो देवेश ने अपने अनुवादों से उन्हें
हिन्दी के पाठक तक लाते हुए कहीं किसी असर को कम नहीं होने दिया है.
देवेश के ये अनुवाद दख़ल द्वारा प्रकाशित मराम की प्रतिनिधि कविताओं
के संकलन "मांस, प्रेम और स्वप्न" से लिए गए हैं.
किताब अमेज़न पर उपलब्ध है. यहाँ क्लिक करें मंगाने के लिए |
एक
अरब माँ का अपने बेटे को पत्र
क्योंकि,
जो
अब और नहीं सह सकते
आज़ादी
उनके सीने के भीतर हृदय के तारों का विस्फोट है
क्योंकि,
यह
बहादुर नाविकों के लिए
मत्स्यकन्याओं
का गाया गीत है
क्योंकि
आज़ादी
सबसे ख़ूबसूरत है
देवी
है बुद्धिमानों की
साहसियों
का प्यार है
मैं
उसके प्रेम में पड़ गयी हूँ
क्योंकि
स्वर्ग है यह अग्नि का
जो
भभक उठती है एक हड़ताल से
ठीक
उसी तरह जैसे कविता शुरू होती है एक शब्द से
ठीक
उसी तरह जैसे प्रेम दमक उठता है एक चुम्बन से
क्योंकि,
सबके लिए सबसे ज्यादा प्यारी है यह
उसे
पूजती हूँ
टपक
पड़ो
जल
की बूंदों के साथ
बन
जाने के लिए लहर,
दुनिया
के किनारों की सफाई करने को..
और
छुओ अजाने मील के पत्थर
मेरे
बेटे..घुल जाओ हवा के साथ
और
अन्याय की जड़ों को उखाड़ फेंकने वाली आंधी बनो..
क्षणज्योति
बन जाओ प्रकाश के भीतर
ताकि
चमक सके आज़ादी का सूरज
तुम्हारा
जीवन बहुत कीमती है
जैसे
हर एक बेटा होता है अपनी माँ के लिए ..
मेरे
बेटे.. मैं तुम्हें तोहफे की तरह
सौंप
रही हूँ
आज़ादी
को..
ढांक
लो उसे, उसे ढांक लो
मेरा
हृदय कांपता है
ठीक
उस नंगे नवजात शिशु की तरह
माँ
के गर्भ से बाहर आते ही जिसे
त्याग
दिया गया
युवा कवि और पत्रकार देवेश |
और शीर्षकहीन कविताएँ
1-
कवितायें बना दी गयी हैं बेकार
गीत कर दिए गए हैं निरर्थक
बेकार कर दिए गए हैं नृत्य
रूदन और कराह भी कर दिए गए बेकार
व्यर्थ कर दी गयी बच्चों की मुस्कराहट
कर दिया गया सबकुछ व्यर्थ
दर’आ तुम्हारे फूल और ज़ैतून की डालियाँ
मौत के सिपाहियों के लिए हैं
शांति की महान दूतों की अद्भुत मोमबत्तियाँ भी नहीं
न तुम्हारी रोटियाँ ही हल्फाया
टैंकों
के भारी हमलों को नहीं रोक सकता कुछ भी 2-
तुम क्या करोगी मेरी बहनों
दर्द से सूज गए
अपने स्तनों के बारे में?
तुम उस दर्द का क्या करोगी
जिससे फट रहा है तुम्हारा पेट?
तुम क्या करोगी मेरी बहनों?
उस लहू का जो बहता है तुम्हारी जाँघों से
काले पड़ गए लहू का..
फैलती बदबू का?
तुम क्या करोगी मेरी बहनों?
जब तुम होगी रजोधर्म की अवधि में..
बीहड़, दर्दनाक जेलों में..
सर्द, अँधेरी जेलों में..
भीड़-भरी, गला घोंटती जेलों में..
जेलों में
जो यातनाएँ देती हैं
जो करती हैं दमन..
ठुंसी होती हैं जो लोगों से..
तुम क्या करोगी मेरी बहनों
जब विस्फोट करेगा लहू
आँखों में?
3.
विस्थापित क्या ले जाते हैं अपने साथ?
जल्दीबाज़ी में वे जुटाएंगे सामान जो ले जा सकें
और अधिकतर को रखेंगे प्लास्टिक के थैलों में
उनकी जिंदगियों जितने फटे
पुराने उनके डर जितने
शायद वे रखेंगे एक बण्डल कपड़े
या शायद वक़्त उन्हें नहीं देगा
जूतों तक को पहनने की अनुमति.
मुहाज़िर भाग रहे मौत से बहुत दूर
वे उसकी पीछा करती तेज़ पदचापों को सुनते हैं
वे अपने थैलों के साथ जल्दी में होते हैं
लौटने की उम्मीद के साथ
वे पार करेंगे सरहद
और सबकुछ जो वो जुटाते हैं
रिसेगा उनके थैलों से शायद
सीरियाई कवि मराम अल-मसरी |
4.
- तुम
कहाँ से हो?
- सीरिया
से.
- सीरिया
के कौन-से शहर से?
- मैं
पैदा हुई डारा में और होम्स में बड़ी हुई
- मैंने
अपनी जवानी बिताई लताकिया में
- मैं
फली बनियास में
- फूली
दीर अज़-ज़ोर में और हमा में जलाई गयी व भभकी इदलिब में
- प्रज्वलित
हुई अल-कमीशली में
- क़त्ल
हुई दर’आ में
- कौन
हो तुम?
- मैं
वो हूँ जिसे डर है
- कौन
इसे तय करेगा?
- कौन
इसे उठाएगा?
- कौन
इसे भड़कायेगा?
- मैं
वो
-
मैं वह हूँ
जिसके गुज़रने से दिलों के पेड़ में पत्तियाँ खिल जाती है
पहाड़ जिसकी
भव्यता के आगे झुक जाते है
जिसके लिए
इतिहास सर के बल खड़ा हो जाता है
धरती जिसके
सूरज के लिए रंग बिखेर देती है
मैं
वह हूँ
जो तानाशाह के मुंह पर चीखती है
चिल्लाती है
मैं वह हूँ जो वीरों के
दिलों-दिमाग के सिवाय नहीं रहती कहीं बंधकर
और नायकों के ह्रदय के अलावा नहीं जानती कुछ
भी
मैं वह हूँ जो समझौते नहीं करती कभी न बिकती
है
मैं रोटी हूँ ज़िन्दगी की और उसका दूध
मेरा नाम है
आज़ादी..
टिप्पणियाँ