ओक्टोवियो पाज़ की बारह कविताएँ : अनुवाद - उज्ज्वल भट्टाचार्य

ओक्टोवियो पाज़ 

 सड़क

एक लम्बी और सुनसान सड़क.
अंधकार में चलता जाता हूं और लड़खड़ाता हूं और गिर जाता हूं
और उठ खड़ा होता हूं, और अंधे सा चलता जाता हूं, मेरे क़दम
ख़ामोश पत्थरों और सूखे पत्तों को कुचलते हैं.

मेरे पीछे भी कोई कुचलता है, पत्थरों , पत्तों को :
अगर मैं धीमा हो जाता हूं, वह धीमा हो जाता है;
अगर मैं दौड़ता हूं, वह दौड़ता है मुड़कर देखता हूं : कोई नहीं.

रोशनी नहीं और दरवाज़ा नहीं,
सिर्फ़ मेरे क़दम मुझे पहचानते हुए,
मुड़ता और मुड़ता जाता हूं हर कोने पर
जो मुझे सड़क पर आगे बढ़ाये जाते हैं
जहां कोई इंतज़ार नहीं करता, कोई मेरे पीछे नहीं होता,
जहां मैं किसी के पीछे होता हूं जो लड़खड़ाता है
और उठकर खड़ा होता हैं और जब मुझे देखता है तो कहता है : कोई नहीं.

स्पर्श

मेरे हाथ
तुम्हारी सत्ता के परदे खोल देते हैं
एक अन्य निर्वस्त्रता से ओढ़ देते हैं तुम्हें
उघाड़ते हैं तुम्हारे शरीर के शरीरों को
मेरे हाथ
आविष्कार करते हैं तुम्हारे शरीर में एक दूसरा शरीर

अंतिम

शायद प्यार करने का मतलब सीखना है
इस दुनिया में कैसे चलते रहना है.
सीखना है ख़ामोश रहना
पुरानी कहानियों की दरख़्तों की तरह.
सीखना है देख सकना.
तुम्हारी नज़र ने बिछाये हैं बीज.
लगाया है एक पेड़.
मैं बोलता हूं
क्योंकि तुम उसके पत्तों को झकझोरते हो.

आर-पार

दिन का पन्ना खोलते हुए
लिखता हूं
तुम्हारी पलकें जो कहती हैं.

तुम्हारे अंदर आता हूं,
अंधेरे की सच्चाई के बीच.
मुझे अंधेरे के सबूत चाहिए, मुझे
पीनी है काली शराब :
अपनी आंखें निकालकर मसल डालता हूं.

रात की एक बूंद
तुम्हारे सीने की उभार पर :
गुलनार की पहेली.

अपनी आंखें बंद कर
खोलता हूं तुम्हारी आंखों के बीच.

अपने गहरे लाल बिस्तर पर
हमेशा जगी हुई :
तुम्हारी भीगी जीभ.

फ़व्वारे ही फ़व्वारे
तुम्हारी नसों के बगीचे में.

ख़ून का नक़ाब पहनकर
तुम्हारी सोच के पार जाता हूं :
सबकुछ भूलते हुए
ज़िन्दगी के उस पार.

चलते-चलते

हवा से अधिक
पानी से अधिक
होठों से अधिक
रोशनी बस रोशनी
तुम्हारा जिस्म तुम्हारे जिस्म की आहट है


जाने और आने के बीच

जाने और ठहरने के बीच
लड़खड़ाता है दिन,
अपनी ही पारदर्शिता के प्यार में डूबा हुआ.
चक्रीय दोपहर अब एक खाड़ी है
जहां अपने सन्नाटे में डोलती है दुनिया.

सब कुछ ज़ाहिर और सब ओझल,
सब कुछ पास और पहुंच से बाहर.

कागज़, क़िताब, पेन्सिल, गिलास,
अपने नामों के साये में पनाह लिये हुए.

मेरी कनपटी पर चोट करता वक़्त दोहराता है
ख़ून के एक ही जैसे लफ़्ज़.

रोशनी के बीच बेतअल्लुक दीवार
गौरो-फ़िक्र का दहशतभरा साया.

अपने को पाता हूं एक आंख के बीचोबीच
कोरी नज़र से खुद को परखता हुआ.

बिखरा जाता है लमहा. कोई हलचल नहीं,
ठहरा हूं और चल पड़ता हूं : मैं दरमियानी हूं.

दो बदन

दो बदन आमने-सामने
कभी-कभी लहरें,
और रात एक सागर.

दो बदन आमने-सामने
कभी-कभी पत्थर के दो टुकड़े,
और रात एक रेगिस्तान.

दो बदन आमने-सामने
कभी-कभी जड़ें,
और रात बिजली की चमक.

दो बदन आमने-सामने :
सुनसान आसमान में
चमकते दो सितारे.

धुरी 

तुम्हारा जिस्म एक पीसती चक्की
उसकी नलिका से सरकता हुआ
मैं लाल गेंहू
मैं रात मैं पानी
मैं आगे बढ़ता हुआ जंगल
मैं जीभ
मैं जिस्म
रात की नलिका से गुज़रता हुआ
मैं धूप की हड्डी
जिस्मों का बहार
तुम गेंहूं की रात
तुम रात का जंगल
तुम इंतज़ार करता पानी
तुम धूप की नलिका में
पीसती हुई चक्की
मेरी रात तुम्हारी रात
मेरी धूप तुम्हारी धूप
मेरा गेंहू तुम्हारी चक्की में
तुम्हारा जंगल मेरी जीभ पर
जिस्म की नलिका से होकर
रात का पानी
तुम्हारा जिस्म मेरा जिस्म
हड्डियों का बहार
धूप का बहार


पुल

अब और अब के बीच,
मैं हूं और तुम हो के बीच,
एक लफ़्ज़ है, पुल.

वहां आती हुई
तुम अपने अंदर पहुंचती हो :
दुनिया जुड़ती है
और बंद होती है अंगुठी की तरह.

एक किनारे से दूसरे किनारे तक,
हमेशा, हमेशा ही
एक फैला हुआ जिस्म होता है :
एक इंद्रधनुष.
मुझे सोना है उसके तले.

पूरक

मेरे शरीर में तुम पहाड़ खोजती हो
उसके जंगल में सूरज खोजती हो.
तुम्हारे शरीर में मैं नाव खोजता हूं
घनी रात के बीच यूं ही बहती हुई.


यूं जिस तरह बारिश को सुना जाता है


मेरी आवाज़ सुनो यूं जिस तरह बारिश को सुना जाता है,
ध्यान से नहीं, बेपरवाह नहीं,
हल्के से क़दम, झिरझिराता हुआ,
पानी जो हवा है, हवा जो वक़्त है,
दिन विदा लेता हुआ,
रात अभी आई नहीं,
कुहरा शक्ल लेता हुआ
जहां मोड़ बनता है,
वक़्त शक्ल लेता हुआ

इस विराम के मुड़ाव पर,
मेरी आवाज़ सुनो यूं जिस तरह बारिश को सुना जाता है,

बिना सुने, सुनो मैं क्या कहता हूं
आंखें अंदर खुली हुई, नींद से बोझल
और होशो-हवास दुरुस्त,
पानी बरसता है, हल्के से क़दम, सरसराहट,
हवा और पानी, लफ़्ज़ बिना वज़न के :
हम क्या है और क्या हैं,
दिन और बरस, यह लमहा,
बिना वज़न का वक्त और बोझिल दुख,

मेरी आवाज़ सुनो यूं जिस तरह बारिश को सुना जाता है,

भीगा डामर चमकता है,
भाप उठती है और बह सी जाती है,
रात उभरती है और मुझे देखती है,
तुम तुम हो और भाप से बना तुम्हारा शरीर,
तुम और रात से बना तुम्हारा चेहरा,
तुम और तुम्हारे बाल, आहिस्ते से बिजली की चमक,
इस पार आती हो तुम और मेरी पेशानी में दाखिल,
मेरी आंखों के ऊपर पानी के क़दमों की चाप,
मेरी आवाज़ सुनो यूं जिस तरह बारिश को सुना जाता है,

डामर चमकता है, तुम इस पार आती हो,
यह कुहरा है, रात में भटकता हुआ,
यह रात है, तुम्हारे बिस्तर में नींद मे डुबी हुई,
यह लहरों की उफ़ान है तुम्हारी सांसों में बसी हुई,
पानी की तुम्हारी उंगलियों से नम मेरी पेशानी,
आग की तुम्हारी उंगलियों से दहकती मेरी आंखें,
हवा की तुम्हारी उंगलियों से खुलती वक़्त की पलकें,
मंज़र उभरते हैं और नई ज़िन्दगी,
मेरी आवाज़ सुनो यूं जिस तरह बारिश को सुना जाता है,

बरस गुज़र जाते हैं, लमहे लौट आते हैं,
सुनती हो पास के कमरे में उनके क़दमों की चाप ?
यहां नहीं, वहां नहीं : तुम उन्हें सुनती हो
एक अलग वक़्त में जो अब है,
सुनो वक़्त के क़दमों की चाप,
जो जगह तैयार करते हैं जिनका कोई वज़न नहीं, जो कहीं नहीं,
आंगन में बहती बारिश को सुनो,
यह रात बागों के बीच कहीं अधिक रात है,
बिजली की चमक पत्तों से चिपकी हुई,
एक बेचैन बाग में भटकती हुई,
तुम्हारा साया छाया हुआ इस पन्ने पर.

वह दूसरा

उसने एक चेहरा खोजा.
उसके पीछे
वह जीता रहा, मरा और फिर से जी उठा
बार-बार.
आज उसका चेहरा
उस चेहरे की झुर्रियों को ढोता है.
उसकी झुर्रियों का कोई चेहरा नहीं है.

अनुवादक 






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