पाब्लो नेरूदा की कविताएँ : अनुवाद - उज्ज्वल भट्टाचार्य


कविता के पाठक नेरूदा से ख़ूब परिचित हैं. हिन्दी में उनके अनुवाद पहले भी ख़ूब हुए हैं. उज्ज्वल भट्टाचार्य के ये अनुवाद उनकी कविता के कुछ और वातायन खोलते हैं. 



अगर तुम मुझे भूल जाओ

मैं चाहता हूँ तुम्हें पता हो
यह बात.

तुम्हें पता है बात कैसी है :
जब मैं
चमकते चाँद, या पतझड़ में
खिड़की के सामने शाखों को देखता हूँ,
अगर मैं
आग के नज़दीक
बुझी हुई राख
या झुलस चुके तने को छूता हूँ,
यह सब मुझे तुम्हारी ओर ले जाता है,
मानो कि सबकुछ
महक, रोशनी, हर चीज़
छोटी-छोटी नावें हैं
मुझे बहा ले जाती हैं
तुम्हारे टापू की ओर जिसे मेरा इंतज़ार है.

बहरहाल,
अगर धीरे-धीरे तुम्हारा प्यार ख़त्म हो जाय
मेरा प्यार ख़त्म हो जाएगा धीरे-धीरे.

अगर अचानक
तुम मुझे भूल जाओ
मुझे मत खोजना,
मैं तुम्हें भूल चुका होउंगा.

अगर तुम पागलों की तरह सोचती रहो
मेरी ज़िंदगी से होकर
कितने परचम लहराये,
अगर तुम तय करती हो
मुझे दिल के उस तट पर छोड़ जाने को
जहाँ मेरी जड़ें हैं,
याद रखना
उसी दिन
उसी घड़ी
अपनी बांहें फैलाकर
अपनी जड़ों के साथ मैं निकल पड़ूंगा
किसी दूसरे मुल्क की ख़ातिर.

लेकिन
अगर हर दिन,
हर घड़ी,
तुम्हें यह अहसास हो कि तुम मेरी हो
अपनी मिठास के साथ,
अगर हर रोज़ तुम्हारे होठों पर
एक फूल खिलता रहे मुझे खोजते हुए,
मेरी प्रियतमा, मेरी अपनी,
मुझमें वह सारी आग कायम है,
कुछ भी बुझी नहीं, कुछ भी भूला नहीं,
तुम्हारा प्यार मेरे प्यार का बसेरा है, प्रियतमा,
ज़िंदगीभर वह तुम्हारे आगोश में होगी
मुझे छोड़े बिना.



अपने सपने के साथ मेरे सपने में सो जाओ

तुम मेरी हो चुकी. अपने सपने के साथ मेरे सपने में सो जाओ.
प्यार, सोग, मशक्कत, सबको अब सोना है.
अनदिखे पहियों पर रात घूमती जाती है
और सोते अम्बर सी पाक मेरे साथ हो तुम.

मेरी प्यारी, मेरे सपने में और कोई भी सोती नहीं होगी.
समय की धार के साथ चलोगी तुम चलेंगे हम.
किसी और को जाना नहीं मेरे साये के साथ,
सिर्फ़ तुम हो, नित्य यह प्रकृति, नित्य है सूरज, नित्य है चाँद.

अपनी कमसिन मुट्ठियों को खोल चुकी हो तुम
फुहार से बरसते हैं रेशमी इशारे बेहिसाब,
भूरे दो डैनों की मानिंद पलकों को समेट लेती हो तुम,

और तुम्हारे पानी में बहता जाता हूँ मैं :
यह रात, यह धरती, ये हवायें बुनती हैं उनकी किस्मत, और
मैं सिर्फ़ तुम्हारे बिना ही नहीं, सिर्फ़ मैं हूँ तुम्हारा सपना.


आज की रात लिख सकता हूँ बेहद दर्द भरी पंक्तियाँ.

लिख सकता हूँ, मसलन, रात बिखर चुकी है
और सिहर उठते हैं नीले सितारे धूर कहीं.

आसमान में रात की हवा भटकती है और गाती है.

आज की रात लिख सकता हूँ बेहद दर्द भरी पंक्तियाँ.
मुझे उससे प्यार था, और उसे भी कभी-कभी.

ऐसी ही रातों को सिमट लिया था उसे अपनी बांहों में
चूमता रहा उसे बार-बार बेकराँ आसमान के तले.

कभी उसे मुझसे प्यार था, और मुझे भी.
ऐसी अज़ीम पुरसकून आँखों से भले प्यार कैसे न हो.

आज की रात लिख सकता हूँ बेहद दर्द भरी पंक्तियाँ.
सोचते हुए कि वो मेरी नहीं, कि मैंने उसे खो दिया.

इस बेशुमार रात को सुनते हुए, बेशुमार उसके बिना.
और मेरे ज़ेहन में कविता आती है घास पर टपकती ओस की तरह.

क्या फ़र्क़ पड़ता है कि मेरा प्यार उसे रोक न सका.
रात बिखरी है और वो मेरे पास नहीं.

बस इतना ही. दूर कहीं कोई गाता है. दूर कहीं.
मेरे ज़ेहन में चैन नहीं कि मैंने उसे खो दिया.

मेरी नज़रें दौड़ती है उस तक पहुँचने को.
मेरा दिल उसे खोजता है, और वो मेरे पास नहीं.

वैसी ही रात है, रोशनी में नहाती वैसी ही दरख़्तें.
हम ही वो न रह गये, जो कभी हुआ करते थे.

अब उससे मुझे प्यार नहीं, बेशक, लेकिन क्या लाजवाब प्यार था.
मेरी आवाज़ तलाशती थी हवा को उसकी आवाज़ को छूने के लिये.

किसी और की, वो होगी किसी और की, मेरे उन चुंबनों की तरह.
उसकी आवाज़, उजला बदन, उसकी अथाह आंखें.

मुझे अब उससे प्यार नहीं, बेशक, मगर शायद प्यार है.
कितना क्षणिक होता है प्यार, और भूलना कितना लंबा.

ऐसी ही रातों को सिमट लिया था उसे अपनी बांहों में
सो मेरे ज़ेहन में चैन नहीं कि मैंने उसे खो दिया.

पर यह आखिर दर्द है जो मुझे उससे मिला
और यह आखिरी कविता जो उसके नाम है.

औरत का जिस्म

औरत का जिस्म, गोरा उभार, गोरी जांघें,
एक धरती सी दिखती हो तुम, पस्त पड़ी हुई.
मेरा खुरदरा किसान का जिस्म जोतता है तुम्हें
और गहराई से फूट पड़ती है नई नस्ल.
अकेला था एक सुरंग सा. कतराते थे परिंदे मुझसे,
हमले के अंदाज़ में ढक लेती थी काली रात.

बचने की ख़ातिर बनाया हथियार तुम्हें,
धनुष में तीर, गुलेल में ढेले की मानिंद.
पर आई बदले की घड़ी, और हो गया प्यार मुझे.
एक जिस्म नर्म खाल, घनी काई और गाढ़े दुध का.
ओ शराब की प्यालियों सा सीना ! ओ खोई हुई आंखें !
गुलाब सा जघन ! उदास और धीमी तुम्हारी आवाज़ !
मेरी औरत का जिस्म, तुम्हारी इनायत में रहना है कायम.

मेरी प्यास, मेरी बेपनाह तमन्ना, मेरी बदलती राहें !
नदी की धार जहाँ बहती रहती है आदिम प्यास
और फिर पस्ती का आलम, और दर्द बेहिसाब.

कविता

और उसी दौर में...कविता आई
मुझे खोजते हुए. मुझे पता नहीं, मुझे पता नहीं कहाँ से
वह आई, सर्द मौसम से या नदी से.
मुझे पता नहीं कब और कैसे,
नहीं, आवाज़े नहीं, न ही थे
अलफ़ाज़, न ख़ामोशी.
लेकिन रास्ते से आई पुकार,
रात की शाखों से,
दूसरों से कटकर,
धधकती आग के बीच
या अकेले लौटते हुए,
कोई चेहरा नहीं था मेरा
और उसने मुझे छू लिया.
पता न था कि क्या कहूँ, मेरी ज़ुबान पे
आया नहीं
कोई नाम,

अंधी थी आंखें मेरी,
और कुछ शुरू हुआ मेरे ज़ेहन में,
हरारत सी या खोए पंखों सा,
और मैं चल पड़ा अपने रास्ते पर,
भेद खोलते हुए
उस आग की ज़ुबान की,
और पहली पंक्तियाँ उभरीं,
आहिस्ते से, जिनका कोई मतलब न था, बिल्कुल
बेतुकी,
होशियारी उसकी
जिसे कुछ न हो मालूम.

और अचानक मैंने देखा
आसमान
खुलता हुआ
खुला हुआ,
सितारे,
चहकते बगीचे,
टूटते साये
तीर, आग और फूलों से
सजी
हवा में लहराती रात, कायनात.

और मैं, जिसका कहीं अंत नहीं,
सितारों से भरे आसमान में मदहोश,
असरार की तस्वीर,
इस सूनेपन का हिस्सा,
सितारों पर सवार,
हवा में नाचता मेरा दिल.

कह दो मुझे, क्या गुलाब नग्न है ?

कह दो मुझे, क्या गुलाब नग्न है
या फिर, वही उसका लिबास है ?

दरख़्त क्यों छिपाते रहते हैं
अपनी जड़ों की शान ?

किसको सुनाई देता है
अपराधी गाड़ियों का अफ़सोस ?

इससे दुखद क्या हो सकता है
जब कोई ट्रेन बारिश में खड़ी होती है ?


ना होना शायद तुम्हारे साथ ना होना है

बिना तुम्हारे चल पड़ने के, एक नीले फूल की मानिंद
धूप को चीरते हुए, और फिर आँखों से ओझल हो जाना
पथरीली पगडंडी से कोहरे के पार,
तुम्हारे हाथ में उस दीये के बिना
सिर्फ़ मेरी नज़रों में जो सुनहरा है,
और किसी को पता नहीं
गुलाब की कलियों में से खिल उठा है,
और सबसे बड़ी बात, तुम्हारे होने, तुम्हारे आने के बिना
अचानक उमड़कर मेरी ज़िन्दगी को पहचानते हुए
गुलाब के पौधे से, गेंहू की खेत से छनती हवा की तरह
:
और इसका मतलब कि मैं हूँ, चूंकि तुम हो.
तुम्हारे होने से मैं हूँ, और हम हैं
और प्यार की ख़ातिर, तुम्हें, मुझे,
हमें, होना है, हम होंगे.


रानी

मैंने तुम्हें रानी कहा है.
कई तुमसे लम्बी हैं, कहीं लम्बी.
कई तुमसे पाक हैं, कहीं पाक.
कई तुमसे प्यारी हैं, अधिक प्यारी.
लेकिन तुम रानी हो.

जब तुम सड़कों से गुज़रती हो
कोई तुम्हें पहचानता नहीं.
किसी को तुम्हारा उज्ज्वल मुकुट नहीं दिखता, कोई नहीं देखता
तुम्हारे पैरों के तले लाल गलीचा
जिस पर क़दम रखते हुए तुम आगे बढ़ती हो,
वह गलीचा जो है नहीं.

और जब तुम आती हो
नदियों की कलकलाहट
मेरे जिस्म में, बज उठती हैं
घंटियाँ आसमान में,
एक गीत छा जाता है सारी दुनिया में.

सिर्फ़ तुम और मैं,
सिर्फ़ तुम और मैं, मेरी जान,
हम उसे सुनते हैं.


हमेशा

मुझे परवाह नहीं
मेरे पहले कौन था.

आओ एक मर्द को
कंधे पर लादी हुई,
आओ, तुम्हारी ज़ुल्फ़ों में फंसे हो सैकड़ों मर्द
;
हज़ारों मर्द तुम्हारे सीने और पैरों के बीच,
आओ एक नदी की तरह
जिसमें सब डूब चुके हों,
जो बहती जाती हो उफ़नते सागर की ओर
लहराती हुई, वक़्त में खोती हुई
!

सबको लेती आओ
इंतज़ार करते मेरे पास
;
हम हमेशा अकेले होंगे
हम होंगे तुम और मैं
दुनिया में अकेले
एक नई ज़िन्दगी की ख़ातिर
!


हर दिन खेलती हो तुम...

हर दिन खेलती हो तुम कायनात की रोशनी से.
बारीक से मेहमान, तुम आती हो फूलों में और पानी में.
तुम इस गोरे चेहरे से कहीं ज़्यादा, जिसे मैं कसकर थामे होता हूँ
अपने हाथों में एक गुलदस्ते की तरह, हर रोज़.

तुम सी कोई नहीं मुझे तुमसे प्यार है.
आओ तुम्हें पीले फूलों की चादर पर लिटा दूं.
किसने लिखा तुम्हारा नाम धुएँ के अक्षरों में दक्षिण के सितारों के बीच ?
ओह तुम्हें याद रखना चाहता हूँ जैसी कि तुम थी अपने होने से पहले.

अचानक मेरी खिड़की पर तूफ़ानी हवा की चोट और गरज. 
आसमान साए सी मछलियों से भरा एक जाल.
देर सबेर उन सबको आज़ाद कर देती है हवा.
बारिश उतार देती है उसका लिबास.

पंछी उड़ते हैं, भागते रहते हैं.
चारों ओर हवा, हवा ही हवा.
सिर्फ़ मैं ही कर सकता हूँ पौरुष का मुक़ाबला.
तूफ़ान के बीच घनी पत्तियों का बवंडर
कल रात आसमान से बंधी सारी नावें तितर बितर.

तुम यहाँ हो, ओह तुम चली नहीं गई.
मेरी आख़िरी चीख का भी तुम जवाब दोगी.
डरी-डरी सी तुम मुझसे लिपटी हो.
फिर भी एक हल्का सा साया तैर जाता है तुम्हारी आँखों में.

मेरी नन्हीं, अब भी तुम मेरे लिये लाती हो शहद भरे फूल,
तुम्हारे सीने में भी उन फूलों की महक.
उदास हवा में ख़त्म हो जाती तितलियाँ
मुझे तुमसे प्यार है, जामुन से तुम्हारे होठों को काटती हैं मेरी ख़ुशियाँ.

मेरे शब्द तुम पर बारिश की तरह झरते हैं, थपकी देते हैं.
तुम्हारे जिस्म की बेजोड़ मोती से मुझे अरसे से प्यार है.
अब तो मुझे यकीन है कि यह कायनात तुम्हारी है.
पहाड़ियों से तुम्हारे लिये ख़ुशियों से भर फूल लाउंगा,
पहाड़ी बदाम और डाली में भरकर चुम्बन.
मुझे तुम्हारे साथ
वही करना है जो वसन्त चेरी के पेड़ों से करता है.



कविताई, पत्रकारिता 
और 
जर्मनी में रहते हुए जर्मन सहित कई भाषाओं विश्व कविता के उत्कृष्ट अनुवाद 

ब्रेख्त की 101 कविताओं का संग्रह 'एकोत्तरशती'(वाणी प्रकाशन), एरिष फ़्रीड की 100 कविताओं का संग्रह 'वतन की तलाश'(वाणी) व हान्स माग्नुस एन्त्सेन्सबैर्गर की कविताओं का संग्रह 'भविष्य संगीत'(राधाकृष्ण प्रकाशन)


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