मनीषा श्रीवास्तव की कविताएँ
मनीषा श्रीवास्तव उन अर्थों में कवि नहीं हैं जिनमें होना आजकल ज़रूरी हो गया है. मतलब सोशल मीडिया पर उनकी वाल पर आपको प्रकाशन/आयोजन आदि की सूचनाएँ नहीं मिलेंगी. लेकिन उन्हें पढ़ते हुए आप उस कवि हृदय की भी थाह पा सकते हैं और बेकली की भी जो कविता लिखने के सबसे ज़रूरी औज़ार हैं. यहाँ बेचैन और असंतुष्ट स्त्री निगाह है दुनिया को अपनी तरह से देखने-समझने और व्याख्यायित करने की सतत कोशिशों के साथ. असुविधा पर उनका स्वागत.
गंध गंध दुर्गंध
गंध की भी होती है अपनी एक दुनिया
होता है अपना एक वजूद
हम करते हैं गंध से प्यार, घृणा और कारोबार
दुधमुँहे से आती है जीवन की गंध
रीझ जाती हूँ
गीली मिट्टी से आती है बारिश की गंध
भीग जाती हूँ
धुले बर्तनों से, पकी फसलों से,बनती
इमारतों से,ट्रॉली वाले से
आती है मेहनत की गंध
शुक्रगुज़ार होती हूँ
तुम्हारी देह से आती है हमारे प्रेम की गंध
मेरी देह से आती है तुम्हारी मोगरा गंध
संजो लेती हूँ
पकती रोटी से आती है भूख की गंध
हर रोज़, बार-बार
सेंक देती हूँ
सरकारें जब सड़ती हैं तो आती है सत्ता की गंध
हवस की, ताकत की, खून की गंध
तब घोटालों के कचड़े से उठती है
लाशों की दुर्गंध
फैल जाती है व्याप्त हो जाती
है कण-कण में
गंध गंध दुर्गंध
दूरी में भी इतना साथ
हर अपने से थोड़ी दूरी
बेगानों से कुछ अपनापन
हो जाए तो बुरा नहीं
दिन की धूप में थोड़ी बदली
और बादल में आधा चाँद
हो जाए तो बुरा नहीं
कुछ शिकन तुम्हारी, मेरे माथे पर
तुम्हारे होठों पर मेरी मुस्कान
हो जाए तो बुरा नहीं
छूटी बातें कुछ पूरी हों
और खामोशी भी हो बात
हो जाए तो बुरा नहीं
चल लेते हैं कुछ दूरी तक
दूरी में भी इतना साथ
हो जाए तो बुरा नहीं ।
पुकार
सुनो..तुम्हें पता है ?
बहुत प्यारी है तुम्हारी हँसी
देखी नहीं बहुत दिनों से
बस मासूम मुस्कान
से टाल देते हो
वक़्त ने खींच लिए
चेहरे के कई रंग
स्याह रातों की स्याही से घेर दी आँखें
गहरी बहुत गहरी कर दी मगर आँखे
भर जाती अब इनमें
दुनिया की सब नमी
एक मुस्कान से
खिल जाते हैं
जहाँ के सारे दर्द
बस वो हँसी जो ग़ायब है
खो गई है किसी माँ के बेटे जैसी
बार -बार पुकारती है वो
हो के बदहवास
लगता है कि बस
आ गया उसका लाल
हर आहट जो जगा देती
एक उम्मीद
फिर लौट जाती है
वैसे ही आती है
तुम्हारे चेहरे पे हँसी
फिर लौट जाती है
और हम इंतज़ार करेंगे
मसीहा तुम फिर जन्म लोगे
हम नतमस्तक होंगे
गीत गाएंगे तुम्हारी पैदाइश के
इंतज़ार करेंगे तुम्हारे आने का
इस बीच तुम्हारे कुछ बच्चे
नफ़रत करेंगे मुहब्बत से
मानव प्रेम से करेंगे तौबा
और हम इंतज़ार करेंगे
तुम्हारे आने का
कुछ बारूद से खेलेंगे
कुछ बम बन जाएंगे
कुछ फट जाएंगे
तुम्हारे घर में
बाकी चिथड़े हो जाएंगे
वे नफ़रत नहीं करेंगे
भूख से
अन्याय से
गैरबराबरी से
वे नफ़रत करेंगे
प्रेम के अलग -अलग नामों से
हथियार हो जाएंगे
इंसानियत के खिलाफ़
इस्तेमाल कर लिए जाएंगे
तुम्हारे नाम पर
मसीहा जब तुम पैदा होगे
हम इंसान से हैवान
हो चुके होंगे
इंसानी खून से
प्यास बुझा रहे होंगे
फिर भी कुछ बचे रहे तो
तुम्हारे जन्म का
इंतज़ार करेंगे
चिथड़ा यादों की
मोमबत्तियाँ जलाएंगे
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